साधू बाबा ने अपना लण्ड मेरी आंतड़ियों तक डाला Part-1 Hindi Sex Story

साधू बाबा ने अपना लण्ड मेरी आंतड़ियों तक डाला Part-1 Hindi Sex Story

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मेरा नाम सुरेखा वाघमारे है और मैं 38 साल की सुंदर, सेक्सी, हॉट, गदराई मानो के सब कुछ हूँ। बच्चे स्कूल में पढ़ते हैं, पति का कूरियर का बिज़नस है। सुबह सब चले जाते हैं तो मैं सारा दिन घर में अकेली ही रहती हूँ।

ऐसी ही एक सुबह की बात है, मैं सबको भेज कर नाश्ता करके बैठी टीवी देख रही थी, कामवाली बाई अभी आई नहीं थी और मैं उसका ही इंतज़ार कर रही थी इसीलिए अभी तक नहाई भी नहीं थी और नाईटी में ही थी। नाईटी के नीचे मैं कुछ भी नहीं पहनती, न ब्रा, न चड्डी, न सलवार न पेटीकोट, मुझे रात को बिलकुल फ्री होकर सोने की आदत है, इसीलिए अक्सर मैं रात को नाईटी भी उतार देती हूँ।
हाँ तो मैं नाईटी में लेटी टीवी देख रही थी कि तभी डोरबेल बजी। मैंने बाहर जाकर देखा, बाहर एक लंबे चौड़े साधू बाबा खड़े थे, सर पे दूध जैसे सफ़ेद बाल, सफ़ेद दाढ़ी मूंछ, भगवा चोला, हाथ में चिमटा, कमण्डल!

मैंने पूछा- क्या है बाबा?
वो बोले- बेटी बाबा भूखा है, कुछ खाने को दे।

पहले तो मैंने बाबा को भगाने की सोची मगर मैंने देखा कि बाबा तो मेरी नाईटी में आज़ाद झूल रही मेरी छातियों को ताड़ रहा है और वैसे भी मेरे निप्पल दिख रहे थे।
मैंने बाबा को मना कर दिया- बाबा अभी कुछ बनाया नहीं।
मगर बाबा नहीं माने- बच्चा रात की बची हुई ही दे दे।

फिर मैंने सोचा कि पता नहीं बेचारा कब से भूखा होगा, मैंने उसे अंदर बुला लिया- आओ, अभी बना देती हूँ।
मैंने बाबा को अपने पीछे आने को कहा। जब मैं जा रही थी तो मुझे ऐसे लग रहा था जैसे बाबा पीछे से आते आते मेरे कूल्हों को घूर रहे थे। अब मेरे चूतड़ कुछ हैं भी भारी, तो सभी देखते हैं, पर बाबा के घूरने से मेरे बदन में झुरझुरी सी हो रही थी और सच कहूँ मेरे मन में तरह तरह के खयाल आ रहे थे

बाबा को अंदर बैठा कर मैं रसोई में पानी लेने गई, बाबा फर्श पर ही बैठ गए, मैं जब पानी का गिलास देने के लिए झुकी तो बाबा ने मेरे नाईटी के गले के अंदर तक निगाह मार कर मेरे सारे गोरे बदन का जायजा लिया।
मुझे अपनी पीठ पर सनसनी सी महसूस हुई।

अब यह तो पक्का था कि बाबा ने मेरे स्तन, मेरा पेट और जांघें तो देख ही ली थी और उन्होंने यह भी देख लिया होगा कि मैंने अपनी नाईटी के नीचे कुछ नहीं पहना था।

पानी के साथ बाबा ने अपने झोले में से कुछ निकाल कर खाया और पानी पीने के बाद बाबा बोले- जय हो।

मैंने पूछा- बाबा क्या लोगे?
अब यह डबल मीनिंग बात थी कि बाबा रोटी खाओगे या बोटी खाओगे।
मैंने मन ही मन सोचा अगर बाबा मेरे से सेक्स करे तो कैसा हो? क्या ये मान जाएंगे?

बाबा कुछ संभलते हुये बोले- जो तेरी श्रद्धा है बच्चा।

अब गेंद मेरे पाले में थी कि मैं बाबा को क्या दूँ। खैर मैं रसोई में गई, और मैं एक परांठा बनाया और दही और आचार के साथ बाबा को दिया।

जब खाना देने को झुकी तो बाबा ने फिर से मेरे झूलते स्तनो कों बड़ी हसरत से निहारा
मैंने पूछा- बाबा और लोगे?

तो बाबा ने बड़े अधिकारपूर्ण कहा- एक और लूँगा, बच्चा।

मेरी अन्तर्वासना जाग गई

मैंने बाबा का दूसरा परांठा बनाना शुरू किया, तो मैंने जानबूझ कर अपनी नाईटी का गला और आगे को खींचा जिससे मेरे मोटे मोटे स्तन और बाहर को उभर कर आ गए।
दूसरा परांठा ले कर मैं बाबा के पास गई और फिर उसी तरह झुक कर बाबा से पूछा- और बाबा?

वो बोले- नहीं बच्चा, बस इतना काफी है।
मैं बाबा के सामने अपने पंजों के बल बैठ गई, मेरे दोनों घुटनों की वजह से मेरे स्तनों की रेखा मेरे गले तक बन गई, एक विशाल क्लीवेज बना कर मैं बाबा के सामने बैठी उनकी आँखों में देख रही थी।

बाबा ने बड़े गौर से पहले मेरे क्लीवेज को घूरा और फिर मेरी आँखों में देख कर बोले- बाबा तुम से प्रसन्न है, मांग क्या मांगती है।
चाहिए तो मुझे क्या था, मैंने वैसे ही कह दिया- बाबा, आजकल मेरे पति न… लगता है किसी और औरत के चक्कर में हैं, मेरे हुस्न की तरफ देखते ही नहीं, और वैसे भी रात को जल्दी सो जाते हैं।

बाबा बोले- तो क्या तुम्हारे बीच कोई बातचीत नहीं होती?

मैंने कहा- होती है बाबा, मगर मैं चाहती हूँ कि बातचीत होती रहे, और मैं एक बार नहीं दो तीन बार हारूँ, मगर वो तो मुझे एक बार भी नहीं हरा पाते।

बाबा ने अपने झोले से एक जड़ी बूटी निकाली और मुझे देकर बोले- इस जड़ी को अपने पति को थोड़ा थोड़ा करके रोज़ खिला, फिर देख, तू कितनी बार हारेगी।

मैंने जानबूझ कर कहा- क्या पता इसका असर हो न हो, कल को अगर ये जड़ी ने असर न दिखाया तो?

बाबा बोले- मैं यह जड़ी खाता हूँ, और इसका असर जानता हूँ।

‘क्या आप मुझे इसका कोई नमूना दिखा सकते हैं?’
मैंने कहा तो बाबा ने अपनी लुँगी खोल दी, नीचे उनके दो गोल गोल आँड और एक लंबा सा लण्ड लटक रहा था

मैंने कहा- यह तो सो रहा है।

बाबा बोले- अपने हाथों से इसे छू कर देख, लोहा न बन जाए तो कहना।

बाबा के कहने पर मैंने बाबा के लण्ड को हाथ में ले कर पकड़ा। मेरे पकड़ने की देर थी के बाबा लण्ड तो तनने लगा और मेरे देखते देखते वो तो पूरा तन गया, पत्थर की तरह सख्त और मजबूत।

मैंने बाबा के लण्ड की चमड़ी पीछे हटाई तो बाबा ने मुझे अपनी तरफ खींचा, मैं थोड़ा आगे को आई तो बाबा ने मेरे सर के पीछे हाथ रख कर मेरा मुँह अपने लण्ड से लगा दिया।
न चाहते हुये भी मुझे चूसना पड़ा, हालांकि मुझे लण्ड चूसना बहुत अच्छा लगता है।
जब लण्ड मैंने चूसना शुरू कर दिया तो बाबा ने मेरी पीठ और चूतड़ सहलाने शुरू कर दिये और मेरी नाईटी ऊपर उठा कर मुझे नंगी धड़ंग कर दिया।
एक बार मेरे दिल में यह विचार भी आया, कि यह मैं क्या कर रही हूँ, मगर अब तो मैं पूरी तरह से बाबा की चंगुल में थी।
बाबा ने मेरी नाईटी उतार दी, मुझे नंगी कर के बाबा बोले- बिस्तर पे चलें?

मैंने हामी भरी और बाबा को अपने बेडरूम में ले गई। बेडरूम में जाकर बाबा ने अपना कुर्ता भी उतार दिया और सारी मालाएँ भी।
बाबा किसी काले सांड से कम नज़र नहीं आ रहे थे।

मुझे बिस्तर पे लेटा कर बाबा मेरे ऊपर आ गए- टाँगें खोल बच्चा…

बाबा ने कहा और मेरी टाँगें खोल कर अपना काला लण्ड मेरी गोरी गुलाबी चूत पे रख दिया। इससे पहले कि मैं खुद को तैयार करती बाबा ने तो लण्ड अंदर भी धकेल दिया, मेरी चूत भी पानी पानी हो रही थी सो लण्ड को अंदर जाने में कोई दिक्कत नहीं हुई।

बाबा बोले- बच्चा, कैसा पसंद करती हो, धीरे धीरे प्यार से, जोशीला या फिर ऐसा कि जैसे मैं तुम्हें कच्चा खा जाऊँ?

मैंने कहा- बाबा अभी तो प्यार से करो, जब मेरा हो जाये तो फिर जैसे चाहे वैसे करना!
मैंने कहा तो बाबा ने मेरे दोनों स्तन पकड़ लिए और उन्हें दबा दबा के चूसने लगे और नीचे से घपाघप मेरी चुदाई करने लगे।

मुझे भी बहुत मज़ा आ रहा था। बेशक बाबा के मुँह से तंबाकू की गंदी सी बू आ रही थी मगर उससे भी बड़ी बात यह कि बाबा तो बहुत बड़े चोदू थे, जितना उनकी सफ़ेद दाढ़ी को देख कर मैं समझ रही थी बाबा तो उससे कहीं ज़्यादा तगड़े थे, उनकी रफ्तार और मुझ पर कंट्रोल एक दम से पक्का था, मैं नीचे लेटी हिल भी नहीं पा रही थी, उनका सख्त लण्ड मेरे अंदर तक चोट कर रहा था।

जब उनका लण्ड मेरे अंदर जा कर लगता तो मुझे ऐसे लगता जैसा उनका लण्ड मेरी आंतड़ियों में जा कर लग रहा है, वो मेरे गाल होंठ नाक कान ठोड़ी पूरा चेहरा चाट गए, उनके थूक से मेरे दोनों स्तन भीगे पड़े थे, और उन पर उनके होंठो के चूसने और दाँतो के काटने के निशान भी यहाँ वहाँ बन रहे थे।
मगर बाबा की ताकत का कोई मुकाबला नहीं था, वो तो ऐसे पेल रहे थे जैसे उन्हें बरसों बाद कोई फ़ुद्दी मिली हो।

मैंने पूछा- बाबा यह बताओ, आखरी बार कब किया था?

बाबा बोले- तीन साल से ऊपर हो गए, तुम्हारे जैसी कोई, बेटा मांगने आई थी।

मैंने पूछा- तो दे दिया बेटा।

‘बिल्कुल!’ बाबा बड़े उत्साहित होकर बोले- एक नहीं, दो दो बेटे दिये उसको।
बाबा ने कहा तो पीछे से आवाज़ आई- बाबा मेरे को भी बेटा चाहिए।

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