यौन संतुष्टि के साधन और कुछ बेस्ट सेक्स पोसिशन्स

यौन संतुष्टि के साधन और कुछ बेस्ट सेक्स पोसिशन्स

सेक्स के दौरान पुरुषो की संतुष्टि महिलाओ की संतुष्टि से जुडी होती है. पुरुष अपनी मर्दानगी को भी महिलाओ की संतुष्टि से जोड़कर देखते है. संभोग क्रिया में पुरुष के लिंग और स्त्री की योनि को प्रमुख साधन माना जाता है। हर स्त्री और पुरुष को अपने शरीर के यौन अंगों की रचना और उससे संपन्न होने वाले कार्यों के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए।

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लिंग-

           लिंग संभोग क्रिया में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लिंग के आगे के भाग को लिंग-मुंड कहा जाता है। लिंग की रचना स्पंजनुमा होती है। इसमें बहुत से छोटे-छोटे सेल्स (कोष) होते हैं। जैसे ही पुरुष के अंदर काम उत्तेजना पैदा होती है वैसे ही इन कोषों में रक्त भरने लगता है और जैसे-जैसे रक्त भरता जाता है वैसे ही लिंग अपने आकार से बढ़ने लगता है और सख्त अवस्था में पहुंच जाता है। जब तक पुरुष संभोग क्रिया में चरम सुख पर नहीं पहुंच जाता तब तक लिंग इसी स्थिति में रहता है।

           कोषों में भरा हुआ रक्त सामान्यता वापिस नहीं लौटता लेकिन किसी प्रकार के डर के कारण, अवधान भंग होने पर, मूड के बदल जाने पर कोषों में भरा हुआ रक्त वापस होने लगता है और लिंग अपनी उत्तेजित अवस्था से मुर्झाने लगता है और अपनी पहले की स्थिति में लौट आता है।

           लिंग का सबसे ज्यादा नाजुक भाग लिंग-मुंड होता है जिसमें हजारों बारीक तंत्रिकाओं का जाल सा बिछा होता है। लिंग-मुंड पर त्वचा की एक पतली सी परत चढ़ी होती है जिसे मुंड चर्म कहते हैं। इस मुंड चर्म को पीछे खींचने पर लिंग मुंड लिंग मुंड अनावृत सा हो जाता है। इसके आगे का भाग छल्ले के आकार में होता है।

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           लिंग-मुंड के नीचे का भाग बहुत ज्यादा नाजुक होता है। संभोग करने से पहले की जाने वाली प्राक-क्रीडा़ के समय अगर स्त्री इस भाग को बार-बार छूती है तो पुरुष जल्दी ही उत्तेजित होकर स्खलित हो जाता है। संभोग क्रिया के समय लिंग के योनि में प्रवेश कराने के बाद घर्षण क्रिया के समय यही भाग गीली योनि पथ के संपर्क में आकर काम उत्तेजना को तेज करता है और पुरुष स्खलन होने की दिशा में बढ़ जाता है।

           यौन शिक्षा के बारे में जानकारी न होने के कारण बहुत से पुरुषों में अपने लिंग को लेकर भ्रम बना रहता है। उनको मन में यह बात घूमती रहती है कि उनका लिंग दूसरे पुरूषों के मुकाबले में छोटा या पतला है। ऐसे लोगों को जानकारी देनी जरूरी है कि जिस प्रकार हर व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से अलग होता है उसी तरह से उनके लिंग भी एक-दूसरे से अलग ही होते हैं।

           पुरुष का लिंग जब सामान्य अवस्था में होता है तो उसकी लंबाई 2-3 इंच तक होती है। यह आकार किसी का कम भी हो सकता है और किसी का ज्यादा भी हो सकता है। लिंग के उत्तेजित होने पर यह लंबाई 5-6 इंच तक हो सकती है।

           असल में स्त्री को संभोग क्रिया के समय संतुष्टि पहुंचाने के लिए लिंग के आकार का कोई महत्व नहीं रहता है। वास्तव में संतुष्टि के लिए लिंग की कठोरता और पूरी तरह संवेगात्मक नियंत्रण के साथ ही स्खलन को रोकने की क्षमता होना जरूरी है।

अंडकोष- 

           अंडकोष को वृषण कहा जाता है। यह 2 होते हैं। अंडकोष लिंग के नीचे 2 अलग-अलग चर्म थैलियों में लटके होते हैं। यह दोनों थैलियां आपस में जुडी रहती हैं इसलिए इसे दो भागों में बंटी हुई एक ही थैली कहना ज्यादा अधिक सही रहता है।

           शुक्राणुओं का निर्माण अंडकोषों में ही होता है। यह शुक्राणु करोड़ों की संख्या में बनते हैं। संभोग क्रिया के समय स्खलन होने में 20-40 करोड़ शुक्राणु होते हैं। हर शुक्राणु अपने आप में पूरा होता है और सारे गुणों से संपन्न होता है। शुक्राणु जैसे ही स्त्री के डिंब के साथ मिलते हैं वैसे ही स्त्री के गर्भ में बच्चे के बनने की क्रिया शुरू हो जाती है।

शुक्रावाहिनी-

           शुक्रवाहिनी एक नलिका होती है। इस नलिका का मुख्य काम अंडकोषों में उत्पादित शुक्राणुओं को शुक्राशय में पहुंचा देना होता है।

शुक्राशय-

           शुक्राशय आकार में और बनावट में मधुमक्खी के छत्ते की तरह का होता है। यह लगभग 2 से 2.5 इंच लंबा और आधा इंच मोटा होता है। शारीरिक रचना के अनुसार इसका आकार बदल भी सकता है। संभोग क्रिया के समय वीर्य शुक्राशय से ही शुक्र नलिका द्वारा प्रवाहित होकर स्त्री की योनि में पहुंचता है।

पौरुष ग्रंथि-

           पौरुष ग्रंथि अखरोट के जैसी होती है। इसका मुख्य कार्य शुक्राणुओं के तैरने या चलने-फिरने के लिए एक खास प्रकार का क्षारीय तरल पदार्थ तैयार करना होता है। इसी तरल पदार्थ के कारण वीर्य झटके के साथ लिंग के रास्ते से प्रवाहित होकर स्त्री की योनि में पहुंचता है। इसी पदार्थ के कारण वीर्य में एक खास प्रकार की काम उत्तेजना बढ़ाने वाली गंध पैदा होती है। काम उत्तेजना बढ़ने के साथ ही पौरुष ग्रंथि तुरंत सक्रिय हो जाती है और एक पारदर्शी तरल शुक्रवाहिनी तथा लिंग नलिका को चिकना और गीला करना शुरू कर देती है ताकि स्खलन के समय जब वीर्य तेज गति से प्रवाहित हो तो नलिका को किसी प्रकार की हानि न हो।

स्खलन क्रिया-

           संभोग क्रिया करते समय पुरुष की काम उत्तेजना लगातार तेज होती रहती है और स्खलन के करीब 3-4 सेकेंड पहले उसे अपने अंग-प्रत्यंग में अजीब सी तरंगे उठती हुई प्रतीत होती हैं जैसेकि उसके शरीर में किसी ने बिजली का करंट छोड़ दिया हो।

           इसके बाद अनैच्छिक तंत्रिकाएं शुक्राशय, शुक्रनलिका तथा पौरुष ग्रंथि एक साथ ही संकुचन शुरू कर देती है जिससे पुरुष का पूरा शरीर लहराने लगता है। शुक्राणु पौरुष ग्रंथि एवं कूपर ग्रंथि से निकलने वाले तरल पदार्थ में मिलकर स्खलन के लिए तैयार हो जाते हैं। पुरुष के उत्तेजना के चरम सुख पर पहुंचते ही वीर्य लगातार 3-4 झटकों के साथ लिंग से निकलकर स्त्री की योनि में प्रवेश कर जाता है।

           स्खलन के समय वीर्य इतनी तेजी से प्रवाहित होता है कि अगर उस समय लिंग को योनि से बाहर निकाल लिया जाए तो वीर्य लगभग 3-4 फुट दूर जाकर गिरता है। पुरुष के स्खलित होते ही लिंग वापिस अपनी पहले वाली स्थिति में आ जाता है।

स्त्री के यौन अंगों की रचना-

           स्त्री के यौन अंग 2 भागों में बंटे होते हैं- बाहरीय यौन अंग और आंतरिक यौन अंग।

           बाहरीय यौन अंगों में वृहद भगोष्ठ, लघु भगोष्ठ, लिंग का मूत्रद्वार तथा योनिद्वार होते हैं। योनिपथ, गर्भाशय, गर्भाशय मुख और डिंबकोश आंतरिक यौन अंग होते हैं।

वृहद भगोष्ठ-

           वृहद भगोष्ठ को बाहरीय योनि कहा जाता है। ये उभरे हुए तथा आपस में सटे हुए होते हैं। लड़की जैसे ही जवानी में कदम रखती है, इन भगोष्ठों पर मुलायम से छोटे-छोटे रोंए उग जाते हैं। ये मुलायम रोएं दोनों भगोष्ठों के ऊपर भी आच्छादित रहते हैं। लेकिन भगोष्ठों के अंदर का भाग चिकना सा बना रहता है तथा काम उत्तेजना बढ़ने पर बार्थोलिन ग्रंथि से निकलने वाले स्राव से गीला हो जाता है। काम उत्तेजना होने पर वृहद भगोष्ठ फूलकर आकार में बढ़ जाते हैं।

लघु भगोष्ठों-

           योनि का यह भाग वृहद भगोष्ठों से ढका हुआ होता है। इसके ऊपर रोएं नहीं होते हैं और इसका रंग गुलाबी होता है। यह बारीक तंत्रिकाओं के जाल से भरा होता है। स्नेह ग्रंथियां चिकनी, मुलायम और संवेदनशील बनाए रखती हैं। काम उत्तेजना बढ़ने के समय इनका आकार भी बढ़ जाता है। स्त्री को चरम सुख की प्राप्ति के बाद वृहद भगोष्ठों की ही तरह लघु भगोष्ठ भी अपने सामान्य आकार में आ जाते हैं।

शिश्निका-

           शिश्निका को स्त्री का छोटा लिंग कहकर भी संबोधित किया जाता है। लिंग मुंड की तरह इसमें भी एक छोटा मुंड होता है जो बहुत ही नाजुक परत से ढका होता है। पूरी शिश्निका में खासतौर से शिश्निका मुंड में अनगिनत बारीक तंत्रिकाओं का जाल बिछा होता है। यह लघु भगोष्ठों के बीच मूत्रमार्ग के पास लगभग आधा इंच ऊपर होती है। शिश्निका मुंड बहुत ही ज्यादा कोमल और नाजुक होते हैं। स्त्री में जब काम उत्तेजना बढ़ती है तब शिश्निका भी फूलकर तन जाती है, इसका आकार बढ़ जाता है और इसके मुंड का आवरण खुद ही पीछे हट जाता है ताकि लिंग के घर्षण के समय उसे पूर्ण संतुष्टि प्रदान हो। काम उत्तेजना होने पर शिश्निका उछलने लगती है। शिश्निका को उंगलियों द्वारा प्यार से सहलाने या गुदगुदाने से जिस स्त्री में काम उत्तेजना नहीं होती उसकी काम उत्तेजना भी तेजी से बढ़ जाती है।

योनिपथ-

           योनिपथ स्त्री के योनि द्वार से लेकर गर्भाशय के मुख तक फैली हुई एक पतली नली होती है लेकिन सामान्य अवस्था में इसकी दीवारें ढीली ही पड़ी रहती है। यह आकार में लगभग 3.5 इंच की होती है। योनिपथ की दीवारें वहुत ही ज्यादा नाजुक और अनगिनत बारीक तंत्रिकाओं से भरी हुई होती है। स्त्री में जब काम उत्तेजना पैदा होती है तो योनिपथ की सिकुड़ी हुई दीवारें सक्रिय होकर बार्थोलिन ग्रंथि के तरल पदार्थ से गीली हो जाती हैं ताकि लिंग उसके अंदर पहुंचकर आसानी से घर्षण क्रिया कर सके। योनिपथ में प्रवेश करने का द्वार वृहद और लघु भगोष्ठों द्वारा सुरक्षित रहता है और यही लघु भगोष्ठ योनि के प्रवेश द्वार पर एक छल्ला सा बनाते हैं जो लिंग के योनि में जाकर घर्षण करने की क्रिया के समय लिंग को दबाकर काम उत्तेजना पैदा करता है और चरम सुख की वृद्धि कराता है।

           संभोग क्रिया को सफल बनाने के लिए योनिपथ का चिकना रहना बहुत जरूरी है क्योंकि अगर योनिपथ सूखा होगा तो लिंग प्रवेश करने के बाद घर्षण क्रिया के समय स्त्री और पुरुष दोनों को ही परेशानी होती है।

गर्भाशय-

           गर्भाशय नाशपती के आकार में होता है। इसका चौड़ा भाग ऊपर की ओर तथा संकरा भाग नीचे की ओर होता है। गर्भाशय के निचले भाग का आखिरी सिरा ही गर्भाशय मुख कहलाता है।

           मनुष्य के जीवन की शुरुआत गर्भाशय में ही होती है क्योंकि भ्रूण यहीं पर पलता-बढ़ता है। गर्भाशय के दोनों ओर बादाम के आकार की 1-1 डिंब ग्रंथि होती है। हर महीने इस डिंब ग्रंथि में से 1 डिंब निकलता है। डिंब ग्रंथियां 2 होती हैं दाईं और बाईं ओर। दोनों डिंब ग्रंथियों में से 1-1 महीने बाद डिंब निकलता है। स्त्री की रजोवृति तक यही क्रम बारी-बारी से जारी रहता है। जैसे ही डिंब से शुक्राणु का मिलन होता है वैसे ही भ्रूण का विकास होना शुरू हो जाता है। भ्रूण स्त्री के गर्भ में लगभग 9 महीने तक विकसित होने के बाद बच्चे के रूप में जन्म लेता है। 

गर्भाशय मुख-

           गर्भाशय मुख को ही गर्भाशय ग्रीवा कहा जाता है और यह गर्भाशय का प्रवेश द्वार है। यह योनि मार्ग के आखिरी सिरे पर स्थित होता है। जिस समय स्त्री में उत्तेजना नहीं होती तब यह प्रवेश द्वार बंद पड़ा रहता है। लेकिन संभोग क्रिया के समय जब स्त्री चरम सुख की तरफ बढ़ रही होती है तो यह प्रवेश द्वार स्वयं ही बार-बार खुलता रहता है ताकि शुक्राणु आसानी से गर्भाशय की ओर अग्रसर हो सके।

संभोग क्रिया में चरम सुख-

           मानव का स्वभाव बहुत ही जटिल कहा जा सकता है। वह संभोग क्रिया के लिए न तो कोई खास मौसम देखता है और न ही दिन देखता है। इस क्रिया के लिए वह हर समय तैयार रहता है। इसके अलावा उसके स्वभाव की एक विशेषता और है कि वह एक तरह का काम करते-करते जल्दी ही ऊव जाता है। संभोग क्रिया में भी ऐसे ही है वह इसमें भी रोजाना नए-नए प्रयोग करना चाहता है।

           विद्वानों ने भी हर रस में काम रस को ही सबसे ऊपर का स्थान दिया है और इस क्रिया के ऐसे-ऐसे ग्रंथों की रचना की है जोकि ठोस तथ्यों पर रचे गए हैं।

           इस बात को झुठलाया नहीं जा सकता कि संभोग मानव जीवन के लिए शारीरिक सुख प्राप्त करने का साधन है, भले ही इससे उनके जीवन में एक नए जीव की उत्पत्ति हो जाए।

           साधारण संभोग क्रिया को शारीरिक सुख का नाम दिया जाता है लेकिन यह शारीरिक सुख नहीं बल्कि मानसिक सुख है क्योंकि एक पुरुष एक स्त्री के साथ संभोग करके बहुत ज्यादा मानसिक शांति और सुख महसूस करता है लेकिन उससे कुछ समय न मिलने पर मन ही मन कुढ़ता रहता है लेकिन वही मनुष्य दूसरी स्त्री के लिए ऐसा महसूस नहीं करता।

           एक बार काम उत्तेजना होने के बाद सारे सुख सामान्यताः एक ही जैसै होते हैं लेकिन फिर भी मनुष्य-मनुष्य और स्त्री-स्त्री में ऐसी भिन्नता क्यों है। इसके लिए कहा जाता है कि दिल लगने की बात है, मन मिल गया है आदि। इसका मतलब यह हुआ कि संभोग का संबंध पहले मन से होता है और शरीर से बाद में।

     संभोग क्रिया का अंत स्खलन पर होता है। इसलिए संभोग क्रिया वह है जो मानसिक सुख प्रदान करती है लेकिन इस क्रिया का संपादन शरीर की इंद्रियां करती हैं।

           स्त्री और पुरुष जब संभोग क्रिया करते हैं तो उसे प्राकृतिक मैथुन कहा जाता है क्योंकि इनकी रचना ऐसी की गई है जिसमें यह दोनों शारीरिक रूप से एक-दूसरे के पूरक हैं। इसके अलावा अगर पुरुष-पुरुष से ही संभोग क्रिया करता है तो उसे अप्राकृतिक मैथुन (समलैंगिकता) कहा जाता है। स्त्री संभोग के बाद समलैंगिकता का ही स्थान आता है।

समलैंगिकता-

           समलैंगिकता की शुरूआत कहां से हुई इसके बारे में अभी साफ तौर पर कहना मुश्किल है लेकिन यह कहा जा सकता है कि यह काफी सदियों से चला आ रहा है।

           इसके लिए कई लोगों का कहना है कि पहले के जमाने में जिन देशों में स्त्रियों की संख्यां बहुत कम हुआ करती थी वहां पर पुरुषों को पुरुषों से ही संभोग क्रिया करके संतुष्ट होना पड़ता था। इसके अलावा मनुष्य हर चीज में नए-नए प्रयोग करते रहने का आदि है इसी लिए किसी समय में जब वह संभोग करने के एक ही तरीके से या स्त्री से ऊब गया हो तब उसने यह तरीका निकाला हो।

           पुराने समय में कई देशों में समलैंगिकता को कानूनी मान्यता मिली हुई थी। संभोग का यह प्रकार किसी तरह से गलत नहीं माना जाता था। उस समय स्त्री के साथ संभोग क्रिया या पुरुष के साथ संभोग क्रिया को बराबरी का ही दर्जा दिया जाता था। इसके लिए काफी लोगों का मानना यह भी है कि इससे जनसंख्या को बढ़ने से रोकने में मदद मिलती है।

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हम आपको कुछ बेस्ट सेक्स पोसिशन्स के बारे में बताने जा रहे है. जिनसे महिलाए काफी जल्दी संतुष्ट हो जाती है.

– इस पोजीशन में पुरुष महिला पार्टनर के ऊपर होते है. साथ ही महिलाओ के पैर पुरुष के कंधे के उप्पर होते है. इस पोजीशन में सेक्स करने से महिलाए काफी जल्दी और पूर्ण रूप से संतुष्ट हो जाती है. इस पोजीशन में महिला के हिप्स के नीचे तकिया रखना ना भूले. इससे सेक्स करने में आसानी होगी.

‘वीमेन ऑन टॉप’ महिला और पुरुष दोनों की पसंदीदा सेक्स पोजीशन है. इस महिला पुरुष के उप्पर चढ़ कर सेक्स करती है. जिसमे दोपनों को ही अत्यंत सुख की प्राप्ति होती है. साथ ही यह पोजीशन महिलाओ को संतुष्ट करने में भी काफी सटीक है.

– टेबल या बेड के कोने पर महिला को लेता कर पुरुषो को खड़े होकर सेक्स करना चाहिए. इस पोजीशन से बेहतर सेक्स और संतुष्टि की प्राप्ति होती है. साथ ही यह महिलाओ की पसंदीदा सेक्स पोसिशन्स में से एक है.