मासूम देवदासियां धर्मगुरुओं की हवसपूर्ति करते हुए फोटो – देवदासी से सेक्स

मासूम देवदासियां धर्मगुरुओं की हवसपूर्ति करते हुए फोटो – देवदासी से सेक्स

मासूम देवदासियां धर्मगुरुओं की हवसपूर्ति करते हुए फोटो – देवदासी से सेक्स| सेक्सी सेक्सी और सुन्दर लडकियों को देवदासियां बनाकर उनके शारीर का मर्दों द्वारा शोषण करा जाता है उनके साथ सेक्स करा जाता है | सेक्स करने के लिये ही लडकियो को देवदासियां बनाया जाता है | मासूम देवदासियां केवल एक प्रकार से सेक्स स्लेव की तरह होती है | वैसे तो वर्ष 1985 में इस प्रथा को पूरी तरह समाप्त कर दिया गया था लेकिन अभी भी इस अश्लील और अमानवीय प्रथा को कहीं-कहीं देखा जा सकता है. समाज के उच्च वर्गीय लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए इस प्रथा को जारी रखने की पुरजोर कोशिश करते हैं.

भारत के कुछ क्षेत्रों में खास कर दक्षिण भारत में महिलाओं को धर्म और आस्था के नाम पर वेश्यावृत्ति के दलदल में धकेला गया। सामाजिक-पारिवारिक दबाव के चलते ये महिलाएं इस धार्मिक कुरीति का हिस्सा बनने को मजबूर हुर्इं। देवदासी प्रथा के अंतर्गत ऊंची जाति की महिलाएं मंदिर में खुद को समर्पित करके देवता की सेवा करती थीं। देवता को खुश करने के लिए मंदिरों में नाचती थीं। इस प्रथा में शामिल महिलाओं के साथ मंदिर के पुजारियों ने यह कहकर शारीरिक संबंध ( सेक्स ) बनाने शुरू कर दिए कि इससे उनके और भगवान के बीच संपर्क स्थापित होता है। धीरे-धीरे यह उनका अधिकार बन गया, जिसको सामाजिक स्वीकायर्ता भी मिल गई। उसके बाद राजाओं ने अपने महलों में देवदासियां रखने का चलन शुरू किया

मुगलकाल में, जबकि राजाओं ने महसूस किया कि इतनी संख्या में देवदासियों का पालन-पोषण करना उनके वश में नहीं है, तो देवदासियां सार्वजनिक संपत्ति बन गर्इं। कर्नाटक के 10 और आंध्र प्रदेश के 14 जिलों में यह प्रथा अब भी बदस्तूर जारी है। देवदासी प्रथा को लेकर कई गैर-सरकारी संगठन अपना विरोध दर्ज कराते रहे। सामान्य सामाजिक अवधारणा में देवदासी ऐसी स्त्रियों को कहते हैं, जिनका विवाह मंदिर या अन्य किसी धार्मिक प्रतिष्ठान से कर दिया जाता है। उनका काम मंदिरों की देखभाल तथा नृत्य तथा संगीत सीखना होता है। पहले समाज में इनका उच्च स्थान प्राप्त होता था, बाद में हालात बदतर हो गये। देवदासियां परंपरागत रूप से वे ब्रह्मचारी होती हैं, पर अब उन्हे पुरुषों से संभोग का अधिकार भी रहता है। यह एक अनुचित और गलत सामाजिक प्रथा है। इसका प्रचलन दक्षिण भारत में प्रधान रूप से था। बीसवीं सदी में देवदासियों की स्थिति में कुछ परिवर्तन आया। अँगरेज़ ने देवदासी प्रथा को समाप्त करने की कोशिश की। तो लोगों ने इसका विरोध किया…