छोटी-छोटी चूचीएं उन्नत वक्ष स्थल बदल गया

प्रेषक: गौतम

हैलो दोस्तों, मेरा नाम गौतम है, में लोनावला का रहने वाला हूँ, में फिर से आपके लिए एक मस्त स्टोरी सोम हूँ। ये कहानी इस तरह से शुरू होता है गाँव का महीना बड़ा बड़ा अज़ीब किस्म का होता है, वहां एक तरफ तो सब कुछ ढका छुपा होता है, तो दूसरा तरफ अंदर ही अंदर ऐसे कारनामे हो रहा है कि जान जाओ तो दास तले उंगली दबा लो । वहां थोड़ी सा भी झगड़ा होने पर लोग ऐसे मोटी मोटी गालीयां, लेकिन अपने बहू बेटियां दो गज का घूंघट निकालने के लिए बोलने और फिर भी लोग दुश्मनों की बहू बेटियां पर बुरी नज़र रखरखाव और ज़रा सा भी मौका अगर मिल जाए तो अंदर की इच्छा इच्छा और गंदी वासना निकाल देगें। मेरा कहने का मतलब यह है कि गाँव में जो ये दबी हुई कामुक भावना है, वो विविधताएं पर भिन्न-भिन्न होताक से बाहर निकलती है। गाँव में खेत, खलीहान, पेड़ो का बाग आदि कई ऐसे जगे है जहां पर छुप-छुपकर तरह-तरह के कुकर्म होता है, तो कभी उनका पता चलता है, तो कभी नहीं चलते पाता।

गाँव के बड़े-बड़े घोर के मर्द तो बकाएडा एक न एक रखेल भी रखता है और जिनके रखेल हो हो जाता है इज़ज़त कम हो रहा था। ये अलग बात है कि इन बड़े घोर की औरते प्यासी ही रहती थी, क्योंकि मर्द तो किसी और कुंए का पानी पी रहा था, उसके दूसर के कुँए का पानी पीने के बाद उसके घर के पानी को पीने की इच्छा नहीं था और अगर किसी दिन पी भी लिया, तो उन्हें मज़ा नहीं आया था। तो इन औरतो ने भी अपने प्यास बुझाने के लिए तरह-तरह के उपे कर रखे थे कुछ ने अपने नौकरो को फंसा कर दिया था और उनके बाँहो में अपनी संतुष्टि खोजती थी, तो कुछ ने कहा छुपे अपने यार बना रहे थे, तो कुछ भी दिन रात वासना की आग में जलकर हिस्टीरिया की मरीज़ बनती थी। खैर ये तो हुआ गाँव के माहौल का थोड़ा सा परिचय, अब आज में आप गाँव के ही एक बड़े घर की कहानी सुनाता हूँ।

ऐसे सभी आप समझते हैं कि ये गाँव की कोई वासनात्मक कहानी है फिर इसको बताने की क्या ज़रूरत है? जब कुछ भी नया नहीं है। तो दोस्तों में बताने के लिए एक अनोखी बात है, जो उस गाँव में पहले कभी नहीं हुआ था इसलिए यह स्टोरी बताई जा रही है, तो फिर सुनो मेरी कहानी। यह गाँव के एक सुखी संपन्न परिवार की कहानी है, उस घर की मालकिन का नाम मुक्ता देवी था और मालिक का नाम तो पता नहीं, लेकिन सब उसे गुप्ता कहते थे। मुक्ता देवी जब शादी होकर आई था तो वो दिखने में कुछ विशेष नहीं था, उसका रंग भी थोड़ा सांका सा था और शरीर दुबला पतला था, लेकिन बच्चा पैदा होने के बाद उनके शरीर भरना शुरू हो गया और कुछ समय में एक दुबली पतली औरत से एक अच्छा ख़ासी स्वस्थ भरे-पूरे शरीर की मालकिन बन गया था।

अब पहले जोकी तरफ इक्का दुक्का लोग की नज़दी पड़ती थी, वो अब सबकी नजरों की इच्छात बनती थी। अब उसका बदन में सही जगह पर भरो आ जाने का कारण हर जगह से कामुकता फूटने लगी था। अब उनका छोटा-छोटा चूचीएं उन्नत वक्ष स्थल में तब्दील हो गया था, उसके बाँ जो जो पहले लकड़ी के डंडे सी लगती थी, अब काफ़ी मांस हो रही थी, उनके पतली कमर थोड़ी मोटी हो गया था और पेट पर माँ चढ़ाया जाने का कारण मोटापा आ गया था और झुकने या बैठने पर दो मोटे-मोटे फोल्ड से बनने लगे थे।

उनके चूतों में भी मांसलता आंख था और अब तो वह चूतड़ लोगों के दिलों धड़का देते थे, उनके जांघे मोटी-मोटी केला के खंभो में बदल गया था, उनके चेहरे पर एक कशिश सी आ गया था और आँख तो ऐसी नशीली लगती थी दो बोतल शराब पी रखी हो। अब उनकी सुंदरता बढ़ने के साथ-साथ उनको संभलकर रहने का तरीका भी आ गया था और वो खुद आप सज सवारकर रखती थी। वो बोलचाल में बहुत तेज़ तर्रार था और सभी घर के काम वो खुद ही नौकरो की मदद से करवाती था।

उसकी सुंदरता ने उसका पति को भी बाँधकर रखा हुआ था, गुप्ता अपने बीवी से डरता भी था इसलिए उसकी कही और मुंह मारने की हिम्मत नहीं होती थी क्योंकि बीवी आई थी तो वो बहुत सारा दहेज ले आई आई तो वह उसके सामने अपना मुंह खोलने में भी डरता था और बीवी भी उसके ऊपर पूर्ण हुकुम चलाती था। वह सब घर एक तरह से अपने कब्जे में कर रखा गया था। अब बेचारा गुप्ता अगर एक दिन भी घर देर से पहुंचता था, तो वो उसे जैसी बातें सुनाई थी कि उसकी सिट्टी पिटी गुम हो रही थी और काम-वासना के मामले में भी वो अपने बीवी से थोड़ा उदास था। मुक्ता देवी कुछ ज्यादा ही गर्म था, उसका नाम ऐसी औरतों में शुमार होता था जो खुद मर्द के ऊपर चढ़ा जाता था।

उस गाँव की लगभग पूजा औरतें उसका लोहा मानती था और कभी भी कोई मुसीबत में फंसने पर उसे ही याद किया गया था। अब गुप्ता बेचारा तो बस नाम का गुप्ता था, असली गुप्ता तो गुप्ताइन था। उन लोगों के एक ही बेटा था, उसका नाम कमलदीप था और प्यार से सब उसे काजु कहा जाता था, वो दिखने में बचपन से सुंदर था, उसके अंदर थोड़ी बहुत चंचलता भी था, लेकिन वैसे वो सीधा सच लड़का था।

फिर भी कमलदीप थोड़ा बड़ा हुआ, तो मुक्ता देवी को लगा कि इसको गाँव के माहौल से दूर भेज दिया गया है पढ़ना लिखा है अच्छा से हो और गाँव के लड़को के साथ रहकर बिगड़ ना जा। तो गुप्ता ने थोड़ी बहुत विरोध करने की भी कोशिश की हमारी एक तो ही लड़का है, उसको भी क्यों बाहर भेज रहा है? लेकिन उसकी कौन सुनता? तो लड़के को उसके मामा के पास भेज दिया गया जो कि शहर में रहकर व्यापार करता था। मामा को भी बस एक लड़की ही था, मुक्ता देवी का ये भाई उससे उम्र में बड़ा था और वो खुशी- खुशी अपने भोज को अपने घर रखने के लिए तैयार हो गया था।

अब दिव्य तरह से बीत रहे थे और अब गुप्ताइन के रूप में और अधिक निखार का जा रहा था और गुप्ता सूखता जा रहा था। अब अगर किसी को बहुत ज्यादा दबाया जाता है तो वो चीज़ हैनी दबती है की उत्पाना ही भूल जाता है। अब वह हाल गुप्ता का भी था, वह भी सब कुछ छोड़ दिया गया था और घर के सबसे बाहर कमरे में चुपचाप बैठा दो-चार निठले मर्दो के साथ या फिर दिनभर हुक्का पीता या फिर ताश खेलता रहता था और फिर शाम होने पर चुपचाप सैक लेता और एक बोतल देशी चढ़ाकर घर जल्दी से वापस आकर बाहर के कमरे में पड़ोस था और नौकरानी खाना दे रहे हैं तो ले लेता नहीं तो अगर पता चलता है गुप्ताइन भूखी बैठी है, तो भी नहीं माँग ा और चुपचाप सो जाता था। फिर जब भी उसके लड़के छुट्टियों में घर आते हैं, तो फिर सबकी चाँदी रहती थी क्योंकि गुप्ताइन बहुत खुश रहती थी, घर में तरह-तरह के पकवान बनते और किसी भी मुक्ता देवी के गुस्से का सामना नहीं करना पड़ता था।

फिर भी दिन, महीना, साल बीतते हुए। अब लड़का 18 साल का हो गया था, वो थोड़ा बहुत चंचल हो हो ही चुका था और वह 12 वीं की परीक्षा भी दे ली था। अब जब परीक्षा कम हो गई तो वो शहर में रहकर क्या करता है? तो मुक्ता देवी ने उसे वापस बुल्वा लिया, तो वो अप्रेल में परीक्षा के ख़त्म होना ही गाँव वापस आ गया। अब उस पर नई-नई जवानी चढ़ी थी, अब उसे शहर की हवा लग रही थी, वो जिम जाता था तो उसका बदन और गठीला हो गया था। फिर जब वो गाँव आया तो उसका बहुत स्वागत हुआ और माँ ने बहुत जमकर खिलाया पिलाया। अब लड़के का मन भी लग रहा था, लेकिन 2-चार दिन के बाद ही इन सब चीज़ो से मन उब सा गया। अब शहर में रहने पर स्कूल जाना, कोचिंग जाना और फिर दोस्तों यारो के साथ समय कटौती था, लेकिन यहा गाँव में तो करने के लिए धरने के लिए कुछ नहीं था, बस दिनभर बैठे रहो तो उसने अपनी समस्या अपने माँ मुक्ता देवी को बता दी ।

फिर मुक्ता देवी ने कहा कि देख बेटा मैं तो गाँव के भी गंदे माहौल से दूर रखने के लिए शहर भेजा गया था, लेकिन अब तू जिद कर रहा है तो ठीक है तू गाँव के कुछ अच्छे लडको के साथ दोस्ती कर ले और उंट के साथ क्रिकेट या फुटबॉल खेल ले, या फिर घूमना, लेकिन एक बात और तू शाम को ज्यादा देर घर से बाहर नहीं रह सकता है। तो काजु इस पर खुश हो गया और कर कि ठीक है मामी में सहमति शिकायत का मौका नहीं दूँगा। काजु लड़का था तो उसके गाँव के कुछ बचपन के दोस्त भी थे, तो उसके साथ घूमना फिरना शुरू कर दिया। अब सुबह शाम उनका क्रिकेट भी शुरू हो गया था, अब काजु का मन थोड़ा बहुत गाँव में लगना शुरू हो गया था। अब घर में चारों तरफ खुशी का पर्यावरण था क्योंकि आज काजु का जन्म दिन था। तो मुक्ता देवी ने सुबह उठाने वाला घर की साफ सफाई करवाई और हलवाई लगावा और खुद भी शाम की तैयारियों में जूट गया। अब काजु सुबह से बाहर ही घूम रहा था, लेकिन आज उसको पूरा छूट मिली हुई थी।

फिर तकरीबन 12 बजे के पास पास जब मुक्ता देवी अपने पति को कुछ काम समझाकर बाजार भेज रहा था, तो उसकी मालिश करने वाला आया। तो मुक्ता देवी उसको देखकर खुश हो गया बोली कि चल अच्छा किया आज आ गया, में खबर खबर भिजना ही था पता नहीं 2-तीन दिन से मेरी पीठ में बड़ा अकदन सी ​​हो रही है। तो बोली तो मैं तो जब सुना कि आज मुन्ना बाबू का जन्म दिन है तो चली आई कि कहीं कोई काम ना निकल आ। काम क्या होना था? ये जो मिला था, वो गुप्ताइन के बहुत मुंह लगी था, गुप्ताइन की कामुकता को मानसिक संतुष्टि प्रदान करता था, वो अपने दिमाग के साथ पूरे गाँव की तरह-तरह की बातें जैसे कि किसके साथ लगी है?

कौन किससे फंसी है? और कौन पर नज़र रखे है? आदि करने में उसे बड़ा मज़ा आता था। और भी थोड़ी कुत्तित प्रवृत्ति की थी, उसके दिमाग में जाने क्या-क्या चल रहा था? उसे गाँव मौहल्ले की बातें बहुत नमक मिर्च लगाकर और रंगीन बनाकर बताने में बड़ा मज़ा आता था इसलिए इन की खूबसूरत जम्मू भी थी।

फिर गुप्ताइन सब कामो से फुर्सत पाकर अपनी मालिश करवाना के लिए अपने कमरे में जा घुड़सवार और दरवाजा बंद करने के बाद बिस्तर पर लेट गया और उसके बालों में तेल की कटोरी ले बैठे। अब वह खुद में हाथों में तेल लगाकर गुप्ताइन की साड़ी को घुटने से ऊपर तक उठाते हुए तेल लगाना शुरू कर दिया गया था। अब गुप्ताइन की गोरी चिकनी टांगो पर तेल लगते हुए की की बातों का सिलसिला शुरू हो गया था। अब ने गुप्ताइन की तारीफ के पूल बांधना शुरू कर दिया था, तो गुप्ताइन ने थोड़ा सा मुस्कुराते हुए पूछे कि और गाँव का हालचाल तो बताओ, तू तो पता नहीं कहाँ कहाँ मुंह मारती रहती है? तू मेरी तारीफ बाद में कर लेना।

तो के चेहरे पर एक अनोखी सी चमक आया, क्या हालिया बताए मालकिन? गाँव में तो अब बस जिधर देखो उधर ज़ोर ज़बरदस्ती हो रही है, परसो मुखिया ने नंद को पिटवाइंड किया, लेकिन आप आजकल के लड़के को जानती हैं, हो सकता है कि कोई भी नीच का कुछ ख्याल तो नहीं है, नंदू का बेटा शहर से पढ़ना है और पता नहीं क्या-क्या सीखने वाला है, तो वह भी कल मुखिया को अकेले में धर डबोचा और लगा दी चार पाँच पटखनी तो मुखिया अपने घर में अपने टूटी टांग ले रहा था और नंदू का बेटा थाने गया। तो गुप्ताइन बोली कि हाँ रे इधर काम के चक्कर में तो पता ही नहीं चला, में भी सोच रहा था कि कल पुलिस ने आई था? लेकिन एक बात तो बताओ तो ये भी सुना है कि मुखिया की बेटी का नंदू के बेटे से कुछ चक्कर था।

तो बोली वह सही सुना है मालकिन, उन दोनों में बड़ा जबरदस्त नैन मटकाका चल रहा हैयस से तो मुखिया खार खाए बैठा था, बड़ा उत्तर जमाना आ गया है लोगों में एक तो ऊँची नीच का भेद मिट गया है, कौन साथ साथ घूम फिर रह रहा है? ये भी पता नहीं चल रहा है।

तो गुप्ताइन बोली कि खैर और सुना, मैंने सुना है तेरा भी आजकल उस सरपंच के छोड़े के साथ बड़ा नैन मटकाका चल रहा है, साली बुढ़िया होकर कहाँ से जवान-जवानक्सो को फंसा लेती है? अब का चेहरा चेहरा कान तक लाल हो गया था, छिनल तो वो था, लेकिन चोरी पकड़े जाने पर उसके चेहरे पर शर्म की लाली दौड़ गया था और शरमाते और मुस्कुराते हुए बोली कि अरे मालकिन आप तो आजकल के लंडो का हाल जानती हो, सब साले छेद के चक्कर में पागल घूमते रहते हैं। तो गुप्ताइन बोली कि पागल घूमते है, या तू अपने जवानी दिखाकर उन्हें पागल कर देता है।

अब के चेहरे पर एक शर्मीली मुस्कुराहट दौड़ गया था, क्या मालकिन में क्या दिखाऊंगा? फिर थोड़ा बहुत सब सब है। तो गुप्ताइन बोली कि थोड़ा सा, साली क्यों झूठ बोलती है? तू तो पूर्ण की पूर्ण छिनल है, तू सब गाँव के लड़को को बिगाड़कर रख देगी ..

तो बोली तो अरे मालकिन बिगड़े को करने में क्या बिगड़ दूंगा? गाँव के सभी लड़के तो दिन राजा चक्कर में लगे रहते हैं। तो गुप्ताइन बोली कि चल साली, तू जैसे दूध की धुली है। तो बोली वह अब जो समझ लो मालकिन, लेकिन आप एक बात बताते हैं कि ये लड़के भी कुछ कम नहीं है गाँव के ताल पर जो पेड़ लगा हुआ है ना उस पर बैठकर बहुत ताक झाँक कर रहा है। तो गुप्ताइन बोली कि अच्छा, लेकिन तुम लोग लड़के को भगाती नहीं? तो बोली बोली चारों तरफ घने-घने पेड़ है, अब कोई पीछे पीछे छुपा बैठा रहगा तो कैसे पता चलेगा? कभी दिखने वाला है, तो कभी नहीं दिख रहा है, बड़े हरामी लड़के है, वो औरतो को चैन से नती भी नहीं है, लड़के तो लड़के लडियां भी कोई कम हरामी नहीं है।

तो गुप्ताइन ने पूछा कि क्यों? वो क्या है? तो बोली कि अरे मालकिन दिखा-दिखाकर नहाती है तो गुप्ताइन बोली कि अच्छा गाँव का बड़ा गंदा माहौल हो गया है तो बोली वह जो भी मालकिन है, अब जीना तो भी गाँव में है ना। तो गुप्ताइन बोली कि हाँ रेओ तो है, लेकिन मुझे अपने लड़के के कारण डर है, कही वो भी ना बिगड़ जा। तो इस पर के के होंठो के कमान थोड़े से खींचते हैं, अब उसके चेहरे की कुटिल मुस्कान जैसे कह रही थी कि बिगड़े को और क्या बिगड़ना? और कुछ ने कुछ नहीं किया ..

सबमिट छोटी-छोटी चूचीएं उन्नत वक्ष स्थल बदलकर मस्तराम पर पहली बार देखा गया। रिसीव।