लाजवन्ती की चुदाई उसी की जुबानी

यह कहानी मैं अपनी सहेली लाजवन्ती की तरफ़ से उसी के शब्दों में लिख रही हूँ।

मेरा नाम है लाजवन्ती, उम्र तेईस साल, रंग गोरा, अंग अंग मानो भगवान् ने अकेले बैठकर तराशा हो, लहराता जिस्म, पतली सी कमर, आग लगा देने वाली छाती बिल्कुल गोल-मोल और सेक्सी, किसी मर्द का, किसी लड़के का उन पर ध्यान न जाए यह हो नहीं सकता, बहुत इतराती हूँ मैं अपनी मस्त छाती के बल पर, लड़का देख तो मेरा पल्लू सरक जाता है, और वक्षरेखा में खेलती सोने की चेन लड़कों के हाथ जेबों में डलवा देती है, मुश्किल से मर्द अपने अंग को पकड़ कर तम्बू बनने से रोकते हैं लेकिन घर जाकर लड़के मुठ मारते और शादीशुदा अपनी बीवी को पकड़ लेते होंगे और मेरे तन मन में भी आग लगा देते है।

मेरे सब दोस्त कहते हैं,”लाजवन्ती, कामातुर पुरुषों से फ़ोन पर बात करने से क्या तुम्हें कोई परेशानी नहीं होती?”

लेकिन अपनी यौन-आवश्यकताओं को देखते हुए मैं नए नए पुरुषों से मिलने की लालसा नहीं छोड़ सकती !

मेरी उम्र यहाँ अन्य लड़कियों की तुलना में कुछ ज्यादा है लेकिन इस बात का मतलब केवल यही है कि मैं आपके लौड़े को किशोरियों की तुलना में बेहतर ढंग से सम्भाल सकती हूँ।

क्या आप मेरी पहली चुदाई के बारे में जानना नहीं चाहेंगे?

मेरी संगत भी सही नहीं थी, इसलिए जवानी चढ़ते ही कदम बहक गए, ऐसे बहके कि मुझे चालू माल बना कर दम लिया।

खैर छोड़ो जवानी कौन सी दोबारा आती है। बुड्डे होकर तो मस्ती होगी नहीं।

मैं एक इंग्लिश मीडियम प्राइवेट स्कूल में पढ़ी हूँ, लड़के लड़कियों का इकट्ठा स्कूल था मेरा। लेकिन यहाँ अनुशासन नाम की कोई चीज़ नहीं थी, मोटी फीस लेते, उनको बस फीस से मतलब, और पेपर वाले दिनों में नक़ल मरवा देते और बच्चे अच्छे नंबर लेकर खुश होते और अपने कई यार दोस्त, रिश्तेदारों को भी अपने बच्चे वहीं डालने के लिए कहते।

पांच पांच हज़ार में टीचर रखे हुए थे जिनकी योग्यता भी उतनी नहीं होती, कम पैसों की वजह से उनको रख लिया जाता।

मेरे स्कूल के लड़के बहुत हरामी थे, लड़किया भी रूह से बेशर्म थी। कोई भी जोड़ा मौका मिलते ही किसी खाली क्लास या फिर ग्राऊंड वगैरा में बैठ चूमा-चाटी करते। कई लड़के तो इतने हरामी थे, वो तो अपनी माशूकों से मुठ मरवाते, उनसे लौड़े चुसवाते। यह देख देख कई बार मेरी पैंटी गीली हुई, मेरी जवानी निचोड़ने के लिए तो सारे लड़के उतावले थे, कई लड़के किसी लड़की को बहन बना मेरे ही तरफ भेज देते मुझे पटाने के लिए।

आखिर जल्लादों के बाज़ार में बकरी कब तक खैर मना सकती है, आखिर उसको हलाल कर ही दिया जाता है। मैं तो हलाल होने की कगार पर खड़ी थी।

हमारे स्कूल में चार हाउस बनते थे, हर हाउस की एक एक हफ्ता ड्यूटी होती थी। मेरी ड्यूटी थी आधी छुट्टी में और प्रार्थना के दौरान देखना कि कोई विद्यार्थी क्लास में तो नहीं बैठा। क्लास में बड़े विद्यार्थी मौका देख एक दूसरे को चुम्मा-चाटी करते, मैं उन्हें क्या कह पाती ? बल्कि छुप कर उनकी हरकत देख देख अपनी स्कर्ट में हाथ लेजा कर अपनी चूत सहलाने लगती। एक बार मेरी ड्यूटी अंडरग्राऊंड साइकिल स्टैंड पर थी क्यूंकि कुछ शरारती लड़के लड़कियों की साइकिलों की हवा निकाल देते और फिर छुट्टी होने के समय उनकी मदद करते और उन्हें प्रभावित करने की कोशिश करते।

एक दिन आधी छुट्टी में मैं नीचे खड़ी थी, तभी वहां हमारे स्कूल का एक ऐसा लड़का, जिसका नाम विक्रांत था, बारहवीं में पढ़ता था, मुझ पर वो पूरी लाइन मारता था, लेकिन उसको सही मौका नहीं मिल पा रहा था कि मुझे दिल की बात कहकर मुझे समेट ले, उस दिन उसने कुछ और ही सोचा था, वो मेरे करीब खड़ा होकर हेल्लो बोला।

मैंने जवाब भी दिया और वहाँ से थोड़ा आगे चलकर खड़ी होने लगी, उसने कलाई पकड़ ली।

प्लीज़ छोडो !

जानेमन छोड़ने के लिए विक्रांत नहीं पकड़ता ! क्यूँ तड़फाती हो ! तेरे रंग रूप पर तो मैं फ़िदा हूँ जान !

मैंने उसको दो बार क्लास में लड़की को चूमते देखा था, पलीज़ आपका पहले से आरजू दीदी से एफेयर है, उनको क्यूँ धोखा दे रहे हो?

धोखा और उसे? बेवकूफ है तू ! वो क्या सिर्फ मेरे से बंधी है? कई यार हैं साली के ! वो खुद मेरे साथ सीरीयस नहीं है !

उसने मुझे खींचा और बाँहों में लेकर मेरे होंठ चूम लिए।

प्लीज़ छोड़ो !

जानती हो न मुझे !

उसने धीरे से मेरे बटन शर्ट खोल अपना हाथ घुसा दिया और ब्रा के ऊपर से मेरी जवानी दबाने लगा।

मैं सिसकने लगी, डर भी था, मजा भी आ रहा था।

साथ साथ वो मेरे होंठों पर इतना फ़िदा हुआ कि चूसना छोड़ ही नहीं रहा था।

उसने एकदम से ब्रा में हाथ घुसा चुचूक मसल दिया।

आय ! छोड़ो मुझे ! मर जाऊँगी !

चुप ! कहा न चुप!

उसने ब्रा के ऊपर से मेरी दायीं चूची निकाली और उसको चूसने लगा।

मुझे अलग सा एहसास होने लगा, शायद इसीलिए लड़कियाँ लड़कों से लिपटी रहतीं हैं !