मेरे पड़ोस की पर्दानशीं लड़की ने मुझ पर भरोसा किया – 2 – Antarvasna Hindi Sex Stories

मेरे पड़ोस की पर्दानशीं लड़की ने मुझ पर भरोसा किया – 2

गौसिया स्खलित होने के बाद सनसनाते दिमाग के साथ बेजान सी पड़ गई जैसे बेहोश हो गई हो। मैं भी थक गया था तो मैं भ उसकी बगल में लेट कर अपनी साँसें दुरुस्त करने लगा।

करीब पांच मिनट बाद उसने आँखें खोलीं और मुझे बड़े अनुराग से देखने लगी।

‘क्या वाकई हर बार इतना मज़ा आता है।’ उसके स्वर में अविश्वास सा था।

‘इससे ज्यादा- उंगली की जगह अगर पेनिस हो तो इससे लगभग दोगुना!’

उसने एक ‘आह’ सी भरते हुए आँखें बंद कर लीं।

कुछ पल तक कुछ सोचती रही, फिर आँखें खोल कर मुझे देखने लगी- क्या लड़की ऐसे ही डिस्चार्ज होती है… मतलब ऐसे ही स्क्वरटिंग करते हुए?

‘नहीं, ऐसा रेयर ही होता है या जानबूझकर किया जाए। मतलब जब यूरीन ब्लेडर भरा हो और सहवास किया जाए तो स्खलन के वक़्त वेजाइनल मसल्स से कंट्रोल हट जाता है… तब ऐसे होता है। ऐसा आम कंडीशन में होने लगे तो समझो कि हर सेक्स के बाद बिस्तर की हालत खराब हो जाए। यह रस नहीं था तुम्हारा… बल्कि पेशाब था।’

‘जो तुम्हारे मुंह में जा रहा था। तुम्हे गन्दा नहीं लगा?’

‘नहीं। मैंने इन पलों में तुम्हें मन से स्वीकार किया था… तुम्हारी कोई भी चीज़ मेरे लिए अस्वीकार्य या घृणित नहीं है। सिर्फ स्खलन के लिए योनि और लिंग का घर्षण किया जाए वहाँ यह बातें मायने रखती हैं पर ऐसे मामले में नहीं।’

‘तुम क्या कह रहे थे कि ये स्क्वर्टिंग जानबूझकर भी की जाती है?’

मैंने अपने मोबाइल पर एक पोर्न साइट खोली और उसे स्क्वर्टिंग वाली फ़िल्में दिखाने लगा जिनमे लड़कियाँ स्तम्भन या स्खलन के दौरान ज़ोर जोर से पेशाब की धाराएँ छोड़ती हैं।

वह गहरी दिलचस्पी से वह छोटी छोटी फ़िल्में देखने लगी और ऐसे ही एक घंटा गुज़र गया।

इस बीच वह धीरे धीरे फिर गर्म हो गई थी, इसका अहसास मुझे तब हुआ जब मैंने उसकी उंगलियाँ अपने शांत पड़े लिंग पर महसूस की।

उसकी उँगलियों की सहलाहट से उसमें फिर जान पड़ने लगी।

मैंने फोन को किनारे रख दिया और उससे सट कर उसकी आँखों में झाँकने लगा।

‘हम रात भर यह करेंगे।’ कहते हुए उसके स्वर में अनिश्चितता थी।

‘देखते हैं… कब तक तुम बर्दाश्त कर सकती हो खुद को इस हाल में!’ मैंने शरारत से मुस्कराते हुए कहा और उसे चिपटा कर अपने ऊपर खींच लिया।

‘तुम्हारे मुंह से कुछ महक आ रही है।’

‘तुम्हारी ही है।’

‘क्या हर बार ऐसे ही डिस्चार्ज होना पड़ेगा मुझे?’

‘यह तुम्हारे ऊपर डिपेंड है। स्खलन सिर्फ लिंग योनि के घर्षण से संभव नहीं होता बल्कि दिमाग को वहाँ, उस पॉइंट पर पहुंचना पड़ता है। अगर तुम चाहो तो अपने दिमाग को दूसरे तरीके से भी वहाँ ले जा सकती हो… हम एक दूसरे को ज़बरदस्त ढंग से रगड़ेंगे, चूमेंगे, सहलाएंगे और तुम अपने शरीर के हर हिस्से से उस घर्षण की उत्तेजना को फील करते हुए अपने दिमाग को पूरी एकाग्रता से वहाँ ले जाने की कोशिश करोगी जहाँ चरमोत्कर्ष का बिंदु है।

किसी भी पल में खुद को रोकोगी या संभालोगी नहीं बल्कि दिमाग से यह ठान लोगी कि तुम्हे स्खलित होना है।’

‘कोशिश करती हूँ। ज़ाहिर है कि मेरे लिए सब कुछ नया है, अजीब है, तो मुझे नहीं पता कि हो पाएगा या नहीं पर कोशिश करुँगी।’

मैंने उसकी पीठ अपने सीने पेट से सटाते हुए उसके दोनों बूब्स ज़बरदस्त ढंग से मसलने शुरू किये, होंठ फिर उसके होंठों से सटा दिए…

उसने कुछ झिझक तो ज़रूर महसूस की क्योंकि मेरा मुंह उसके कामरस और मूत्र से सना था लेकिन दिमाग पर हावी होते नशे ने वह झिझक कुछ ही पल में मिटा दी और वह खुद से सहयोग करने लगी।

एक हाथ उसके वक्ष पर छोड़ कर दूसरे को मैं नीचे ले गया और उसकी योनि के ऊपरी भाग को सहलाने रगड़ने लगा।

कुछ ही पलों में वह ऐंठने मचलने लगी।

बिस्तर की चादर फिर अस्त व्यस्त होने लगी और हमारे नग्न शरीरों के बीच ऐसी रगड़ घिसाई शुरू हो गई जैसे कोई फ्रेंडली मल्ल युद्ध चल रहा हो।

यहाँ उसमें ज़रा भी शर्म या झिझक बाकी नहीं रही थी और वह सब कुछ खुल कर एन्जॉय कर रही थी, जिसमें सारी चीज़ें उसने पोर्न क्लिप्स में देखी रही होंगी।

उसके मुंह से रह रह कर कामोत्तेजना से भरी सिसकारियाँ फूट रही थीं जो मेरे कानों में रस घोल रही थीं।

बिस्तर इस धींगामुश्ती के लिए छोटा पड़ गया। हम कहीं अधलेटे बिस्तर पर हो जाते कहीं बिस्तर छोड़ कर कमरे की दीवारों से जा चिपकते, कहीं ठन्डे फर्श पर लोटने लगते।

अजीब नज़ारा था… बस ऐसा लग रहा था जैसे कोई पागल प्रेमी जोड़ा ज़माने से बेखबर, अपने प्राकृतिक रूप में उस छोटी सी जगह में कामक्रीड़ा में ऐसा मस्त हो कि न दुनिया की खबर रह गई हो न अपनी।

हमारी भारी साँसें और मस्ती में डूबी सिसकारियाँ कमरे की सरहदों को तोड़ रही थीं।

इस बीच उसके नितम्बों को ज़बरदस्त ढंग से दबाते, मसलते मैंने कई बार कुछ कुछ क्षणों के लिए अपनी उंगली उसके न सिर्फ योनिद्वार में घुसाई बल्कि उसके पीछे के छेद में भी घुसाई, जिसे महसूस करके वह कुछ पलों के लिए रुकी, अटकी, झिझकी लेकिन फिर मेरे आदेशानुसार उसने उस उंगली को भी कामक्रीड़ा का एक अंग मान कर स्वीकार कर लिया।

मेरे पड़ोस की पर्दानशीं लड़की ने मुझ पर भरोसा किया – 2

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