ब्लू-फिल्मों की बदौलत मैं चुदासी बन गई

हाय मेरे मस्तराम के रीडर्स आज मैं आप सभी के समक्छ बहुत ही अनोखी कहानी सुनने जा रही है जिसे लेकर मुझे पूरी उम्मीद है की आप सभी को मेरी ये कहानी बेहद ही पसंद आएगी। इस कहानी को लिखने की हिम्मत तो मुझमे थी ही नहीं लेकिन बहुत सी कहानिया पढ़ने के बाद ओर बहुत सारे लोगो के एक्सपिरियन्स सुनने के बाद आज मैं हिम्मत करके इस कहानी को लिख रही हूँ। आप सबका सहयोग मुझे चाहिए जिससे की आगे भी मैं ओर कई कहानिया लिख सकु। मैं पिछले करीब 4 सालों से बाकयदा अपने पालतू कुत्ते से चुदवाती आ रही हूँ। मुझे पूरा एहसास है कि मेरी हरकतें इस दुनिया की नज़रों में बेहद नाजायज़ और बदकार हैं लेकिन मैं अपने कुत्ते से चुदवाये बगैर नहीं रह सकती। मैं उससे बेहद मोहब्बत करती हूँ और उससे चुदवाने की निहायत आदी हो चुकी हूँ। अपनी दास्तान तफसील से बयान करने से पहले मैं अपने बारे में बता दूँ।

मेरा नाम वसुधा शेख है और मैं 37 की मॉडर्न ख्यालों वाली तालीम-याफता तलाकशुदा औरत हूँ। मैंने बंगलौर के नामी-गिरामी कॉलेज से एम-बी-ए किया हुआ है। वैसे तो मैं धुले की रहने वाली हूँ लेकिन तलाक के बाद पिछले eight साल से मैं मुम्बई में अकेली रहती हूँ और एक प्राइवेट बैंक में जनरल मैनेजर हूँ। अच्छी-खासी तनख्वाह है जिसकी वजह से मेरा लाइफ-स्टाइल भी काफी हाई-क्लास है।

वैसे तो मैं पीछले 6 साल से अपने एलसेशन कुत्ते, ‘जैकी’ से चुदवा रही हूँ लेकिन कुत्तों से चुदाई से मेरा तार्रुफ 24 साल की उम्र में ही हो गया था। तब मैं धुले में ही एम-कॉम कर रही थी और फाइनल ईयर शुरू होने के पहले दो महीने ट्रेनिंग के लिये मुम्बई आयी थी। मेरे बाबा के किसी दोस्त की एक दूर की रिश्तेदार तब मुम्बई में जुहू इलाके में अकेली रहती थीं और मैं उन ही के साथ उनके शानदार फ्लैट में पेईंग-गेस्ट बन कर रहने लगी। उनका नाम कस्तुरी था और वो करीब 38 साल की बहुत ही खूबसूरत और खुशदिल औरत थीं। उनके शौहर किसी दूसरे मुल्क में नौकरी करते थे। शायद दुबई या कुवैत में पर मुझे ठीक से याद नहीं। मैं उन्हें ‘कस्तुरी आँटी’ कह कर बुलाती थी। उनके पास एक बड़ा सा काले रंग का डोबरमैन कुत्ता भी था जिसे वो ‘जानू’ कह कर बुलाती थीं।

ट्रेनिंग के लिये मुझे नारीमन पॉइन्ट के करीब जाना पड़ता था इसलिये मैं सुबह ही निकल जाती थी और शाम को लौटती थी। शाम को मैं खाना बनाने में कस्तुरी आँटी की मदद करती और उनके कुत्ते जानू के साथ खेलती और टीवी देखती थी। उनके शानदार फ्लैट में तीन बेडरूम थे इसलिये मैं और कस्तुरी आँटी अलग-अलग कमरे में सोती थीं। एक-दो हफ्तों में मैं कस्तुरी आँटी से काफी वाकिफ हो गयी। कस्तुरी आँटी काफी खुले और आज़ाद ख्यालों वाली थीं। हर रोज़ रात को खाने से पहले टीवी देखते हुए शराब के एक-दो पैग पीती थीं। मुझसे भी बॉय-फ्रेंड्स वगैरह के बारे में पूछती और अपने कॉलेज के दिनों में इशकबाजी के किस्से और शादी से पहले गैर-मर्दों से अपनी चुदाई के किस्से भी मुझे सुनाती।

एक दिन शाम को मैं घर आयी तो कस्तुरी आँटी ने मुझे बताया कि उन्हें एक पार्टी में जाना है और उन्हें लौटने में रात को काफी देर हो जायेगी। उन्होंने मुझे हिदायत दी कि मैं दरवाजा ठीक से अंदर से लॉक कर लूँ और खाना खा कर सो जाऊँ और उनके लौटने का इंतज़ार ना करूँ। उनके पास बाहर से दरवाजा खोलने के लिये दूसरी चाबी थी। मैं खाना खा कर टीवी देखने लगी और टीवी देखते-देखते वहीं सोफे पर ही सो गयी।

करीब आधी रात के वक्त कस्तुरी आँटी वापस लौटीं तो मेरी नींद खुली। मैंने देखा कि कस्तुरी आँटी काफी नशे में थीं। इससे पहले मैंने उन्हें कभी इतने नशे में नहीं देखा था। उन्होंने ऊँची हील के सैन्डल पहने हुए थे और नशे में उनके कदम ज़रा से लड़खड़ा भी रहे थे। “काफी मज़ा आया पार्टी में… आज थोड़ी ज्यादा ही पी ली”, कस्तुरी आँटी मुस्कुराते हुए बोलीं। “तू फिक्र ना कर और अंदर जा कर सो जा…. सुबह जाना भी है तुझे…. मैं थोड़ी देर टीवी देखुँगी… मेरी सहेली ने एक इंगलिश मूवी की कैसेट दी है!” (उस ज़माने में सी-डी या डी-वी-डी प्लेयर नहीं थे)

उन्हें ड्राइंग रूम में छोड़ कर मैं अपने बेडरूम में जा कर सो गयी। सोते हुए मुझे करीब एक घंटा हुआ होगा जब सिसकरियों की आवाज़ से मेरी नींद खुल गयी। हालाँकि मुझे चुदाई का कोई तजुर्बा नहीं था लेकिन मैं बा‍ईस साल की थी और सैक्सी किताबों और ब्लू-फिल्मों की बदौलत उन सिसकरियों का मतलब बखूबी समझती थी। लेकिन मुझे ताज्जुब इस बात का था कि कस्तुरी आँटी के साथ आखिर था कौन। मैं बिस्तर से उठी और दरवाजे के पास जाकर बिना आवाज़ किये धीरे से थोड़ा दरवाजा खोला। जब मैंने ड्राइंग रूम में झाँक कर देखा तो मुझे अपनी नज़रों पर यकीन नहीं हुआ।

कस्तुरी आँटी ने जो सलवार-कमीज़ पहले पहन रखी थी वो अब सोफे पर एक तरफ पड़ी थी और उनके जिस्म पर इस वक्त सिर्फ एक छोटी सी ब्रा और उनके पैरों में वही ऊँची पेंसिल हील वाले सैन्डल मौजूद थे। सबसे हैरत की बात ये थी कि कस्तुरी आँटी फर्श पर अपने हाथ और घुटनों के बल झुकी हुई थीं और उनका कुत्ता जानू पीछे से उनकी कमर के दोनों तरफ अपनी अगली टाँगें जकड़े हुए उनके चूतड़ों पर चढ़ा हुआ था और आहिस्ता-आहिस्ता झटके मार रहा था। कस्तुरी आँटी की पीठ पर पुरी तरह से झुका हुआ वो कुत्ता सामने देख रहा था और उसके कुल्हे एक लय में कस्तुरी आँटी के चूतड़ों पर आगे-पीछे ठुमक रहे थे। कस्तुरी आँटी अपनी आँखें मूंदे सिसक रही थीं। करीब दो मिनट तक मैं हैरत-अंगेज़ आँखें फाड़े देखती रही और उसके बाद मेरे होशो हवास बहाल हुए। साफ ज़ाहिर था कि उस डोबरमैन कुत्ते के लन्ड से अपनी चूत चुदवाते हुए कस्तुरी आँटी दुनिया जहान से बिल्कुल बेखबर थीं।

फिर अचानक जानू ज़ोर से झटका मारते हुए कस्तुरी आँटी की कमर पर और आगे झुक गया और उसके कुल्हे हैरत-अंगेज़ रफ्तार से आगे-पीछे चोदने लगे। जानू के पिछले पैर ज़मीन पर फिसलने लगे थे लेकिन उसने चोदने की रफ्तार ज़रा भी कम नहीं की। “आऊ…! आआऊ…! ऊऊऊहहह…! ऊँआआऊ!” कस्तुरी आँटी ज़ोर से कराहने लगीं और अपना एक हाथ नीचे से अपनी टाँगों के करीब ले गयीं। “ओहह नहींऽऽ! आआऊऊऽऽऽ! ऊँऽऽ…! मर गयीऽऽऽ!”

कुत्ता जो भी कर रहा था उसकी हरकत से कस्तुरी आँटी को तकलीफ हो रही थी। उनकी मुठ्ठियाँ फर्श के मुकाबिल जकड़ कर बंद और खुल रही थीं। उनका खुला हुआ मुँह दर्द से बिगड़ा हुआ था। “ऊँहहऽऽ आआईईऽऽऽ! मादरचोद…. जानू! आज फिर तूने अपनी ज़ालिम गाँठ अंदर ठूँस दी!” कराहते हुए कस्तुरी आँटी फर्श पर ज़रा सा आगे की ओर खिसकीं तो कुत्ता भी उनके साथ चिपका हुआ खिंच गया लेकिन उनसे अलग नहीं हुआ। कुत्ते ने उसी तेज़ रफ्तार से चोदना ज़ारी रखा। मुझे साफ ज़ाहिर था कि कस्तुरी आँटी तकलीफ में थीं। उनके खिसकने से अब वो दोनों साइड से मेरी नज़रों के सामने थे और मैं उनकी तकलीफदेह हालत साफ-साफ देख पा रही थी। कुत्ते के लन्ड की जड़ में गेंड जैसी फूली हुई गाँठ कस्तुरी आँटी की चूत में पैंठ कर फंस गयी थी और दोनों एक दूसरे से वैसे ही जुड़ गये थे जैसे कुत्ता और कुत्तिया अक्सर आपस में चिपक कर जुड़ जाते हैं।

“ऊँऊँऽऽ जानू…!” कस्तुरी आँटी कराही पर फिर उन्होंने जूझना बंद कर दिया और अपनी गाँड हवा में कुत्ते के मुकाबिल और ऊपर ठेल कर अपना सिर फर्श पर टिका दिया। जानू अभी भी ज़ोर-ज़ोर से आगे पीछे चोदना ज़ारी रखे हुए था। कस्तुरी आँटी अब पुर-सकून हो गयी थीं तो कुत्ता बहुत तेज़ रफ्तार से छोटे-छोटे झटके मार कर चोद रहा था। जानू के कुल्हे लरजते और काँपते नामुदार हो रहे थे। मुझे फिर से कस्तुरी आँटी की सिसकियाँ और कराहें सुनाई दीं लेकिन अब ऐसा लग रहा था कि एक बार फिर हालात उनके काबू में थे और अब उन्हें मज़ा आ रहा था।

मुझे भी एहसास नहीं हुआ कि मैंने कब अपनी नाइटी उठा कर पैंटी में हाथ डाल कर अपनी चूत सहलाना शुरू कर दिया था। मैंने देखा कि कस्तुरी आँटी के ऊपर झुके हुए जानू ने अचानक अपने कुल्हे चलाना बंद कर दिये और उसी तरह बे-हरकत खड़ा हो गया। कस्तुरी आँटी से कस कर चिपका हुआ कुत्ता ऐंठ कर काँप रहा था। उसकी आँखें भी शीशे की तरह जम गयी थीं। फिर उसने आहिस्ता-आहिस्ता अपने कुल्हे चला कर चोदना शुरू किया लेकिन एक-दो मिनट में ही फिर से बिल्कुल रुक गया। उस वक्त मुझे एहसास हुआ कि जानू ने कस्तुरी आँटी की चूत में अपना रस छोड़ दिया है।

जानू तो निबट गया था लेकिन जब उसने कस्तुरी आँटी से अलग होने की कोशिश की तो ज़ाहिर हो गया कि वो और कस्तुरी आँटी अभी भी एक दूसरे से चिपक कर जुड़े हुए थे। “नहीं… जानू…! प्लीज़! रुक! जानु रुक!” कस्तुरी आँटी ने उसे हुक्म दिया। जानू भी फरमाबरदार था और कस्तुरी आँटी की कमर से उतरने की और कोशिश नहीं की और मुँह खोलकर अपनी जीभ बाहर निकाले हाँफता हुआ उनकी कमर पर चढ़ा रहा। कस्तुरी आँटी भी हाँफ रही थीं और गहरी साँसें ले रही थीं। “मेरा अच्छा बच्चा जानू!” वो प्यार से बोलीं, “नाइस बॉय! बस ऐसे ही रुके रहो!” जानू कस्तुरी आँटी की पीठ पर निढाल सा हो गया और उनकी गर्दन और बालों को चाटने लगा।

कस्तुरी आँटी बहुत ही एहतियात से आहिस्ता से खिसकीं ताकि उनकी चूत में फंसी कुत्ते के लन्ड की गाँठ पर खिचाव ना पड़े। ऐसे ही कुलबुलाते हुए कस्तुरी आँटी थोड़ा और इधर उधर खिसकीं और अपना दाहिना हाथ अपनी टाँगों के बीच में ले जा कर अपनी चूत और कुत्ते के लन्ड को टटोला। फिर कस्तुरी आँटी अपनी चूत सहलाने लगीं। बहुत ही चोदू नज़ारा था। दो-तीन मिनट में ही कस्तुरी आँटी पूरे जोश में अपनी चूत अपने हाथ और उंगलियों से ज़ोर-ज़ोर से सहला रही थीं जबकि उनका आशिक-कुत्ता जानू उनकी कमर पर सवार था और उसका लन्ड उनकी चूत में फंसा हुआ था। इधर मैं भी अपनी चूत ज़ोर-ज़ोर से रगड़ रही थी।

मुझे ये देख कर हैरत हुई कि कुत्ते ने फिर आहिस्ता-आहिस्ता अपने कुल्हे चलाने शुरू कर दिये। कस्तुरी आँटी के हिलने डुलने और लन्ड से भरी चूत सहलाने से शायद जानू का लन्ड फिर से उकसा गया था। “नहीं जानू! फिर से नहीं! रुक..!” कस्तुरी आँटी कराहते हुए चींखी लेकिन वो खुद उस वक्त बहुत मस्ती में थीं और झड़ने के करीब थीं। जानू अब ज़ोर-ज़ोर से अपने कुल्हे आगे-पीछे चलाने लगा था और कस्तुरी आँटी भी अपने चूतड़ हिलाती हुई पूरे जोश में अपनी चूत रगड़ने लगीं। “आआआईईईऽऽ! आआऽऽऽ ऊँआआआईईईऽऽऽ!” कस्तुरी आँटी की चूत में झड़ने की आगाज़ी लहरें फूटने लगीं तो वो मस्ती में कराहने लगीं। कुत्ते का लन्ड उनकी चूत में वैसे ही कायम था और दोनों ने अपनी-अपनी मस्ती में डूबे हुए अपनी अलग-अलग ताल पकड़ ली।

“ऊँहह आँहह ऊँऽऽ आँईईऽऽ!” कस्तुरी आँटी ज़ोर-ज़ोर से कराह रही थीं। उनका चमकीला जिस्म ऐंठ गया था। एक हाथ अपनी चूत सहलाने में मसरूफ होने की वजह से वो एक ही हाथ के सहारे झुकी हुई थीं और उनके तने हुए मसल लरज़ते हुए अलग ही नज़र आ रहे थे। वो रुक-रुक कर लंबी साँसें लेती तो फुफकारने जैसी आवाज़ निकलती। जानू बेहद जोश में कस्तुरी आँटी की चूत में लन्ड पेल रहा था और कस्तुरी आँटी भी वैसे ही डटी रही। कस्तुरी आँटी की चूत में झड़ने की आखिरी लहरें दौड़ने लगीं तो उनकी ताल अहिस्ता हो गयी और उन्होंने अपना हाथ चूत से हटा लिया। एक बार फिर अपने दोनों हाथों और घुटनों के सहारे झुकी हुई स‍इदा आँटी अपनी कमर पर कुत्ते को सम्भालने लगीं।

कुत्ता भी वैसे ही झड़ने लगा जैसे कि पिछली बार झड़ा था। बस इतना फर्क था कि इस बार झड़ते हुए वो दो -तीन बार रिरियाया। “ओहह जानू! आँहह जानू!” स‍इदा आँटी सिसकीं, “ऊँह! आँह! उँहह.. ऊँह!” कस्तुरी आँटी की सिसकियों और कुत्ते की रिरियाहट से साफ ज़ाहिर था कि कुत्ते के लन्ड से गरम शीरा कस्तुरी आँटी की चूत में बह रहा था। कस्तुरी आँटी उस वक्त जानू की कुत्तिया बनी हुई थी। कईं सारे हल्के-हल्के झटके मारते हुए जानू का झड़ना बंद हुआ और फिर से वो कस्तुरी आँटी की कमर पर निढाल सा हो गया।

“मादरचोद जानू! तूने फिर से चोद दिया! मेरी चूत दर्द कर रही है!” कस्तुरी आँटी सिसकते हुए बोली, “बस अब ऐसे ही रुके रहो!” जानू को तो जैसे पहले से ही स‍इदा आँटी के इस हुक्म की उम्मीद थी। वो पहले से ही बिना हिले-डुले उनकी पीठ पर झुका हुआ था। दोनों थके हुए और ज़ाहिरन मुतमाइन थे। स‍इदा आँटी ने अपना सिर फर्श पर टिका दिया लेकिन अपनी गाँड कुत्ते के मुकाबिल उठी रहने दी जिसका लन्ड इस वक्त अपनी कुत्तिया की चूत में कस कर बंधा हुआ था।

मैं खुद तीन-चार बार झड़ चुकी थी और अपनी चूत रगड़ते हुए एक बार फिर झड़ने के बहुत करीब थी। तभी जानू ने मेरी तरफ देखा और उसके कान खड़े हो गये। “या अल्लाह!” मैं मन ही मन में बोली। खुशकिस्मती से कस्तुरी आँटी थोड़ा कसमसायीं और कुत्ते का ध्यान पल भर के लिये उनकी तरफ फ़िर गया। मैंने जल्दी से दरवाज़ा बंद किया और पलट कर बिस्तर में घुस गयी। मेरा दिमाग घूम रहा था और हज़ारों ख्याल उमड़ रहे थे। साफ ज़ाहिर था कि अपने कुत्ते से स‍इदा आँटी की ये चुदाई पहली दफा नहीं थी बल्कि वो अक्सर उससे चुदवाती थीं।

हालाँकि मुझे चुदाई का तजुर्बा नहीं था लेकिन मैं चुदाई से मुत्तलिक सब जानती थी। सत्रह-अठारह साल की उम्र से ही मैं भी हम-उम्र लड़कियों की तरह सैक्स में दिल्चस्पी लेने लगी थी। स्कूल के दिनों में ‘मिल्स एंड बून’ की रोमाँटिक किताबें बहुत मज़े लेकर पढ़ती थी और फिर बी-कॉम के दिनों से धीरे-धीरे गंदी सैक्सी किताबें पढ़ने का शौक लग गया था। दिन में कईं बार अपनी उंगलियाँ या केले, मोमबत्ती और वैसी कोई भी चीज़ अपनी चूत में घुसेड़-घुसेड कर चोदते हुए मज़े लेती थी। बी-कॉम के फाइनल इयर में ही थी जब मैंने पहली बार कुछ सहेलियों की सोहबत में ब्लू-फिल्म देखी थी और अब तक पाँच छः दफा ब्लू-फिल्में देख चुकी थी। लेकिन आज तो मैंने चुदाई का एक ऐसा हैरत‍अंगेज़ और चुदास नज़ारा अपनी आँखों से देखा था जो मैंने पहले कभी किसी ब्लू-फिल्म या सैक्सी किताब में भी नहीं पढ़ा था और ना ही ऐसा कभी तसव्वुर किया था।

फिर एक हफ्ते बाद मैं धुले वापस आ गयी और धीरे-धीरे वक्त गुज़र गया। एम-कॉम पूरा करने के बाद मुझे एम-बी-ए करने के लिये बैंगलौर के बहुत ही जाने-माने कॉलेज में दाखिला मिल गया। बैंगलौर में हॉस्टल में रहती थी और इस दौरान मैंने कभी-कभार शराब पीना भी शुरू कर दिया। मैं बेहद खूबसूरत और हसीन थी और स्कूल के ज़माने से ही कितने ही लड़के मुझे लाइन मारते थे लेकिन मैं कभी भी किसी के इश्क़ में नहीं पड़ी ना ही शादी से पहले कभी किसी से चुदवाया।

एम-बी-ए पूरा होते ही मेरा निकाह हो गया। मेरे शौहर भी काफी तालीम-याफता थे और उनकी बेहद अच्छी नौकरी थी। शादी के बाद शुरू-शुरू में उनके साथ बेहद खुश थी पर धीरे-धीरे मुझे पता चला कि मेरे शौहर को सट्टे-बाजी का शौक था। अक्सर क्रिकेट मैचों के वक्त बड़ी-बड़ी शर्तें लगाते थे। मैंने कईं दफा उन्हें समझाने रोकने की कोशीश की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। आखिर में एक दिन बहुत बड़ी शर्त हार कर दिवालिया भी हो गये तो मुझे दहेज के लिये परेशान करने लगे। आखिर में तंग आ कर शादी के दो साल बाद ही मैंने तलाक ले लिया और मुम्बई में एक बड़े प्राइवेट बैंक में नौकरी कर ली।

मुम्बई में मैं अकेली किराये के फ्लैट में रहने लगी। इसलिये हिफाज़त और अकेलापन दूर करने के लिये एक एलसेशन कुत्ता ले लिया। आहिस्ता-आहिस्ता ज़िंदगी बाकायदा चलने लगी। ज्यादा वक्त तो मैं काम में ही मसरूफ रहती और अक्सर मुझे दूसरे शहरों और कभी-कभार गैर-मुल्कों जैसे अमेरिका, यूरोप भी दौरों पर जाना पड़ता। ज़िंदगी वैसे तो पुरसुकून थी लेकिन तन्हाई की वजह से मैं कुछ ज्यादा ही चुदासी रहने लगी थी। हालाँकि ऐसे हज़ारों मौके आये कि जब अगर मैं चाहती तो गैर-मर्दों से चुदवा सकती थी लेकिन मैं कभी हिम्मत नहीं जुटा पायी। पाँच-छः साल पहले स‍इदा आँटी के किस्से के बावजूद अपने कुत्ते जैकी से चुदवाने का ख्याल भी कभी मेरे ज़हन में नहीं आया।

अपनी चुदासी चूत की भड़कती प्यास बुझाने के लिये मैं हर रोज़ मैस्टरबेशन का सहारा लेती। कॉलेज के ज़माने की तरह ही फिर से गंदी सैक्सी किताबों और ब्लू-फिल्मों का चस्का लग गया। इसके अलावा मैंने अक्सर शराब पीना भी शुरू कर दिया। जब भी काम के सिलसिले में यूरोप जाती तो डिल्डो और ब्लू-फिल्में ज़रूर खरीद कर लाती। इस तरह मैंने तरह-तरह के छोटे-बड़े कईं डिल्डो जमा कर लिये और रात-रात भर मैं इन डिल्डो से अपनी चूत की आग बुझा कर मज़ा लेती।

ऐसे ही करीब दो साल बीत गये। एक दिन की शाम को मैं बैंक से घर लौटी तो मैं बेहद चुदासी महसूस कर रही थी। लौटते हुए रास्ते में मैं चर्च-गेट स्टेशन के नज़दीक सड़क किनारे पटरी पर बिकने वाली हिंदी की दो-तीन गंदी सैक्सी कहानियों की किताबें ले कर आयी थी। अगले दिन इतवार था इसलिये शराब की चुस्कियों के साथ चुदासी कहानियों का मज़ा लेने का प्रोग्राम था। दरसल अंग्रेज़ी की सैक्सी कहानियों के मुकाबले मुझे हिंदी और उर्दू के गंदे अश्लील अल्फाज़ों वाली चुदासी कहानियाँ पढ़ने में ज्यादा मज़ा आता है।

घर पहुँचते ही कपड़े बदले बगैर ही मैं ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठ कर वोडका की चुस्कियाँ लेते हुए वो रंगीन चुदासी किताबें पढ़ने में मसरूफ हो गयी। कहानियाँ पढ़ते-पढ़ते जल्दी ही मेरी चूत मचमचाने लगी और शराब का भी थोड़ा नशा होने लगा। मैंने अभी भी काले रंग का फॉर्मल पेन्सिल स्कर्ट और सफेद टॉप पहना हुआ था। इस दौरान शराब और किताब का मज़ा लेते हुए मैं अपनी स्कर्ट का हुक और ज़िप खोल चुकी थी और पैंटी के अंदर हाथ डाल कर चूत सहला रही थी।

ऐसे ही कुछ देर में नशा इस कदर परवान चढ़ गया कि मैं झूमने लगी। किताब में छपे हर्फ भी साफ नहीं पढ़ पा रही थी तो आखिरकार किताब एक तरफ उछाल कर फेंकते हुए मैं खड़ी हुई और सैंडलों में लड़खड़ा कर चलती हुई और रास्ते में अपनी स्कर्ट और बाकी कपड़े उतारती हुई मैं बेडरूम की तरफ बढ़ी। जब मैं बेडरूम में पहुँची तो पैरों में ऊँची पेन्सिल हील के काले सैंडलों के अलावा मैं मादरजात नंगी थी। बेडरूम में आदमकद आइने के सामने खड़े हो कर मैंने अपना जिस्म निहारा और खुद को आइने में देखते-देखते बेड तक पीछे हटते हुए बिस्तर पर बैठ गयी। अभी भी अपने सामने आइने में देखते हुए मैंने अपनी टाँगें फैलायी और अपनी चूत के ऊपरी लबों पर उंगली फिराते हुए खुद को देखा।

फिर आहिस्ता से अपनी दो उंगलियाँ अंदर घुसेड़ दीं। चूत की मचमचाहट और झड़ने की तमन्ना मुझ पर हावी हो गयी और मैं अपनी चूत में दो उंगलियाँ अंदर बाहर करती हुई पीछे बिस्तर पर कमर के बल लेट गयी। मेरे चूतड़ बिस्तर के किनारे पर थे और पैर ज़मीन पर। मेरी चूत बेहद भीगी हुई थी और मैंने तीसरी उंगली भी अंदर घुसेड़ दी और आहिस्ता-आहिस्ता अंदर बाहर करने लगी। दूसरे हाथ से अपने निप्पल उमेठते हुए मैं सिसक रही थी। फिर अपनी भीगी उंगलीयाँ बाहर निकाल कर मैंने आहिस्ते से उन्हें फिसलाते हुए अपने तंग छेद की तरफ खिसका दिया जो मुझे दिवाना कर देता है। अपनी बीच वाली भीगी हुई चिकनी उंगली मैंने अपनी गाँड के छेद पर फिरायी और फिर आहिस्ता से अंदर घुसेड़ दी। उसी लम्हे मुझे वो महसूस हुआ! यही वो लम्हा था जब मेरी ज़िंदगी में एक नये हसीन दौर का आगाज़ हुआ लेकिन दुनिया की नज़रों में ये मेरी बदकार और बदचलन ज़िंदगी का आगाज़ था!

मुझे अपनी गाँड के छेद और उसके अंदर घुसी हुई उंगली के आसपास गरम और मुलायम भीगा सा एहसास हुआ। मैं चौंक कर घबराते हुए हड़बड़ा कर बैठी तो देखा कि जैकी मेरी उंगली चाट रहा था। उसने मेरी तरफ देखा लेकिन उसने चाटना बंद नहीं किया। मेरे अंदर कतरा-कतरा चींख उठा कि उसे रोक दूँ! उसे परे ढकेल दूँ! लेकिन फिर अचानक कईं साल पहले कस्तुरी आँटी और उनके कुत्ते की चुदाई का नज़ारा मेरे ज़हन में उभर आया और फिर शराब के नशे और अपनी उंगली और गाँड के छेद पर जैकी की ज़ुबान के एहसास ने मुझे कमज़ोर बना दिया। मैं अपनी उंगली अंदर-बाहर करती हुई जैकी को अपनी वो उंगली और गाँड ज़ुबान से चाटते हुए देखने लगी।

मैंने नज़रें उठा कर सामने आइने में खुद को जैकी की ज़ुबान से मज़े लेते हुए देखा। ज़लालत का एहसास होने की बजाय ये नज़ारा देख कर मेरी चाहत और ज़्यादा बढ़ गयी। मैंने उसे परे ढकेल सकती थी…. चिल्ला कर डाँटते हुए उसे रोक सकती थी… ! लेकिन उसे रोकने की बजाय मैंने उसकी ये हरकत ज़ारी रहने दी। मुझे जैकी की ज़ुबान अपनी चूत के ऊपर क्लिट की तरफ चाटती महसूस हुई। एक बार फिर उसने ऐसे ही किया लेकिन इस बार उसकी ज़ुबान का दबाव ज्यादा था जिससे कि उसकी ज़ुबान मेरी चूत के अंदर घुस कर चाटते हुए मेरी क्लिट तक ऊपर गयी। चाटते हुए उसकी ज़ुबान मेरी चूत के अंदर बाहर फिसलने लगी। बहुत ही मुख्तलिफ़ एहसास था। मुझे उसकी ज़रूरत थी…उसकी आरज़ू थी। काँपते हाथों से मैंने अपनी चूत फैला दी इस उम्मीद के साथ कि वो मेरी तड़पती चूत को अपनी खुरदुरी ज़ुबान से चाटना ज़ारी रखेगा। जैकी ने ऐसा ही किया… अपनी लालची ज़ुबान से मेरी चूत चाटते हुए रस पीने लगा। बे-इंतेहा हवस और वहशियाना जुनून सा मुझ पर छा गया था।

फिर मैं बिस्तर के बीच में अपने हाथों और घुटनों के बल झुककर कुत्तिया की तरह हो गयी और जैकी को भी बिस्तर पर आने को कहा। वो कूद कर बिस्तर पर चढ़ गया और पीछे से मेरी चूत चाटने लगा। मैंने देखा कि उसका लाल-लाल चमकता हुआ लौड़ा कड़क हो कर बाहर निकला हुआ था। उसके लौड़े का नाप देख कर बेखुदी-सी की हालत में मैंने अपना हाथ बढ़ा कर उसका अज़ीम लौड़ा अपनी मुठ्ठी में ले लिया। मेरी इस हरकत से जैकी झटके मारते हुए मेरी मुठ्ठी में अपना लौड़ा चोदने लगा। लेकिन साथ ही उसने मेरी चूत चाटना बंद कर दिया जो मैं नहीं चाहती थी। उसे मसरूर करना उस वक्त मेरी नियत नहीं थी।

मैंने उसका लौड़ा सहलाना बंद कर दिया तो वो फिर से मेरी चूत अपनी ज़ुबान से चाटने लगा। मैं मस्त होकर ज़ोर-ज़ोर से सिसकने लगी और कुछ ही देर में चींखते हुए झड़ गयी। जैकी ने फिर भी मेरी चूत चाटना बंद नहीं किया और इसी तरह मेरी चूत ने दो बार और पानी छोड़ा। मुझे ज़बरदस्ती जैकी का सिर अपनी चूत से दूर हटाना पड़ा क्योंकि लगातार चाटने से मेरी क्लिट बहुत ही नाज़ुक सी हो गयी थी और दुखने लगी थी। जैकी के चाटने की मिलीजुली दर्द और मस्ती अब मुझसे और बर्दाश्त नहीं हो रही थी।

तीन बार झड़ने के बाद भी मेरी हवस कम नहीं हुई थी। बल्कि अब तो मैं उसका लंड अपनी चूत में लेने के लिये बेताब हो रही थी। प्यास की वजह से मेरा गला सूख रहा था तो पानी पीने पहले मैं नशे में लड़खड़ाती हुई किचन में गयी। जैकी भी मेरे पीछे-पीछे आ गया। मैं तो नंगी ही थी और जैकी बीच-बीच में मेरी टाँगों के बीच में अपना सिर घुसेड़ने की कोशिश कर रहा था। मैं उसकी ये कोशिश कामयाब नहीं होने दे रही थी तो वो मेरे टाँगें या फिर मेरे पैर और सैंडल चाटने लगता।

पानी पी कर मैं पेंसिल हील के सैंडलों में झूमती हुई ड्राइंग रूम में आ गयी और धड़ाम से गिरते हुए सोफे पर बैठ गयी। फिर अपनी टाँगें फैला कर मैंने जैकी के आगे वाले पंजे अपने हाथों में लेकर उसे अपने नज़दीक खींचते हुए अपने कंधों पर रख दिये। उसका लौड़ा अब बिल्कुल मेरी बेताब चूत के सामने था। अपना एक हाथ नीचे ले जा कर मैंने उसका लौड़ा अपनी मुठ्ठी में लिया और उसे अपनी चूत में हांक दिया। जैकी जोर-जोर से धक्के मारने लगा। मैं भी सोफे से अपनी गाँड ऊपर उठा कर उसके धक्कों का जवाब देने लगी। लेकिन मैं ज्यादा देर तक इस तरह उसका साथ नहीं दे सकी और वापस सोफे पर अपनी गाँड टिका कर बैठ गयी और आगे की चुदाई उस पर ही छोड़ दी। मैंने महसूस किया कि इस पूरी चुदाई के दौरान उसके लौड़े से पतला सा चिपचिपा रस लगातार मेरी चूत में बह रहा था।

मैं दो दफा चींखें मारते हुए इस कदर झड़ी कि मेरी आँखों के सामने अंधेरा छा गया। फिर थोड़ी देर बाद इसी तरह ज़ोर-ज़ोर से चोदते हुए अचानक जैकी ने एक ज़ोर से धक्का मारते हुए अपने लौड़े के आखिर की गाँठ मेरी चूत में ठूँस दी। मेरी तो दर्द के मारे साँस ही गले में अटक गयी। दर्द इस कदर था कि मैं छटपटा उठी। मुझे अपने शौहर के साथ पहली चुदाई याद आ गयी। थोड़ी सी देर में मेरा दर्द थम गया और मुझे एहसास हुआ कि जैकी झड़ने के बहुत करीब था। उसने चोदना ज़ारी रखा और मैं प्यार से उसके कान सहलाने लगी। फिर अचानक मुझे गरम और बहुत ही गाढ़ा चिपचिपा रस अपनी चूत में छूटता हुआ महसूस हुआ।

बाद में मुझे एहसास हुआ कि हम दोनों आपस में वैसे ही चिपक गये थे जैसे मैंने कस्तुरी आँटी और उनके कुत्ते को आपस में जुड़ते हुए देखा था। मैं जैकी को खुद से अलग नहीं कर सकती थी इसलिये मैंने उसे उसी हाल में रहने दिया और मैं उसे पुचकारते हुए उसका जिस्म अपने हाथों से सहलाने लगी। जैकी से इस तरह जुड़ कर चिपके हुए मुझे अजीब सा मज़ा और सुकून महसूस हो रहा था। करीब बीस मिनट बाद उसके लंड की गाँठ सिकुड़ी और हम अलग हुए।

उस एक नशीली शाम के बाद सब कुछ बदल गया और मेरी ज़िंदगी में फिर से बहारें आ गयी… ज़िंदगी का खालीपन दूर हो गया। मैं तो जैकी की इस कदर दीवानी हूँ कि उससे बकायदा हर रोज़ ही तरह-तरह से चुदवाती हूँ… उसका लंड चुसती हूँ और अक्सर गाँड भी मरवा लेती हूँ। जैकी भी बहुत शौक से मेरी चूत चाटने और चोदने के लिये मुश्ताक रहता है। इसके अलावा जज़बाती तौर पे भी हमारे दरमियान बेपनाह मोहब्बत है। हमारा रिश्ता बिल्कुल मियाँ-बीवी जैसा ही है। काश की ये ज़लिम दुनिया हमारे रिश्ते को समझ पाती।