गुल्लू पहलवान की बीवी सेक्सी शकुंतला

हिंदी सेक्स स्टोरी गुल्लू पहलवान की बीवी सेक्सी शकुंतला

मुझे पहले से ही बोड़ी बील्डिंग करने का सौख था. मैंने इसलिए मिरज से 10 किमी दूर एक छोटे से गाँव के गुल्लू पहेलवान के पास ट्रेनिंग लेना चालू किया था. गुल्लू कोई साँढ से कम नहीं था. वह 34 साल का था. उसकी हाईट 6 फिट और चौड़ाई ऐसी थी की अच्छे खासे लोग भी उसके सामने बच्चे लगते थे. लेकिन उसकी बीवी शकुंतला को देख के लगता ही नहीं था की वो गुल्लू पहलवान की बीवी हैं. वो एक सेक्सी और सुड़ोल शरीर वाली थी. उसकी कमर 28 से ज्यादा नहीं थे और उसके बड़े बूब्स और गोल गांड देख के मैं अपना शिष्य धर्म पहले दें ही भूल गया था. मुझे शकुंतला की भोसड़ी देखनी थी एक बार. भोसड़ी इस लिए कहा, क्यूंकि गुल्लू जैसे सांढ से चुदने के बाद अब चूत तो कह ही नहीं जा सकती थी. मुझे बस एक बार शकुंतला की भोसड़ी को देखना था. लेकिन यह इतना आसान नहीं था. मुझे अभी 2 महीने हो गए थे और गुल्लू ने गांड टाईट कर रखी थी हमारी. क्यूंकि मैं फुल टाइम बोड़ी बिल्डिंग करता था इसलिए दुसरे लोगो की तरह मैं 1-2 घंटे नहीं पर 5 घंटे के लिए गुल्लू के यहाँ आता था. सुबह बाइक ले के आता और शाम को वापस मिरज चला जाता था. गुल्लू को जो पैसे देता था उसमे वो मुझे दोपहर का खाना भी देता था. उस दिन गुल्लू को किसी काम से कराड जाना था. उसने दोपहर के 1 बजे मुझे कुछ एकसरसाइज बताई और बोला की मैं अब शाम के बाद ही लौटूंगा इसलिए तुम यह कर के घर निकल जाना. मुझे लगा की वो अपनी बीवी को लेके जाएंगा, लेकिन मेरे आश्चर्य के बिच वो अकेला ही गया.

दोपहर के 1:45 हो गई थी, खाने का वक्त. तभी शकुंतला की आवाज आई, अनुराग आ जाओ खाने के लिए. मैंने लकड़े के एक्सरसाइज सामान को साइड में रखा और मैं मस्त गांड हिला के चलती शकुंतला के पीछे चलने लगा. उसकी मटकती गांड को देख के मुझे एक बार फिर से उसकी भोसड़ी देखने का मन करने लगा. भोसड़ी का गुल्लू किस्मतवाला था, जो उसे ऐसे सेक्सी शारीर का मजा लेने का अवसर मिलता था. मैंने हाथ धोए और टेबल के उपर जा के बैठ गया. इन दोनों को कोई बच्चा नहीं था और घर में उस वक्त हम दोनों के अलावा कोई नहीं था. मैंने देखा की उसने मेरे पसंद की चौली और रोटी बनाई थी, साथ में दही और केले भी काटे थे. उसने हलकी पिली ड्रेस पहनी थी जिसका गला काफी खुला था. मेरी नजर ना चाहते हुए भी उसके गले और फिर धीरे से उसकी निचे यानी के उसके बूब्स की तरफ जाने लगी. आज तक गुल्लू पहलवान के घर होने की वजह से बात करने का मौका ही नहीं मिला था खुल के. हाँ, वो मेरी तरफ देख के स्माइल जरुर देती थी. मैंने भी उसे आज तक देख के खुश होता रहा था, भोसड़ी का गुल्लू यही मरा रहता था.

अब मेरी और शकुंतला की नजर मिलने लगी. एक चोर को जैसे दुसरे चोर की नजर पता होती हैं; इसी तरह मुझे भी लगा की शकुंतला चुपके से मुझे देख रही थी. मैंने उसे देखा और वो मेरी तरफ देख के हंस रही थी. मैंने एक दो बार देखा और सोचा की उस से बात कर के देखूं की क्या वो भोसड़ी दिखाएगी, लेकिन सीधे तो ऐसे बोल नहीं सकते इसलिए मैंने घुमा फिरा के बात करने का सोचा.

मैं: तो आप को तो मैंने घर में ही देखा हैं, आप जॉब नहीं करती हैं.?

शकुंतला: मेरी किस्मत इस चार दिवारी में हैं इसलिए मैंने यही मिलूंगी ना अनुराग. (उसकी बातो में छिपा हुआ दर्द साफ़ महसूस हो रहा था.)

मैं: तो आप शादी से पहले जॉब करती थी.

शकुंतला: हाँ, दर असल मैं पूना की हूँ. गुल्लू मेरे मासा का भांजा था. और मेरे ना चाहते हुए भी इस के साथ शादी करनी पड़ी. मैं पूना में एक कंपनी में रिसेप्शनिस्ट थी.

ओह तो यह मामला था. कहाँ, एक ओफीस की रिसेप्स्नीस्ट और कहाँ गुल्लू पहलवान. वो तो भोसड़ी का शकल से ही गुंडा लगता था. मेरी मज़बूरी थी की इतने सस्ते में मुझे कोई और पहलवान कम से कम मिरज के एरिया में तो नहीं मिलने वाला था. वरना इस अकडू भोसड़ी वाले के पास मैंने कभी कुस्ती नहीं सीखनी थी. वैसे गुल्लू पहलवानी में अव्वल नम्बर था, बस नार्मल बातो में चूतिया था. मेरी नजर अब शकुंतला की आँखों में गड़ी हुई थी. वो भी मेरी तरफ आँखे गड़ा के देख रही थी. मैंने बात को आगे बढाई.

मैं: अच्छा, सोरी…मुझे पता नहीं था.

शकुंतला: नहीं ऐसी कोई बात नहीं हैं. जैसी मेरी किस्मत, मैंने थोड़ी सोचा था की बड़े शरीर वालो का सब कुछ बड़ा नही होता हैं. (शकुंतला एक तीर छोड़ बैठी थी अब तो. और अगर मैंने उसे जवाब नहीं दिया तो शायद यह गोल्डन चांस मेरी जिन्दगी में दुबारा कभी नहीं आना था.)

मैंने शकुंतला की तरफ देखा, उसकी आँखों में आवकार था. शायद वो मुझ से चुदने के लिए बेताब थी. मैंने उसे कहा: मैं समझा नहीं.

शकुंतला: अनुराग, मैं अब इसके आगे क्यां बताऊँ. तुम भले मना करो लेकिन मैं जानती हूँ की तुम्हे पता चल गया हैं. तुम अब ज्यादा भोले मत बनो.

भोसड़ी की शकुंतला सब जानती थी. और मुझे अब पक्का यकीं हो गया की उसे अपनी चूत मरवानी थी मुझ से और कुछ नहीं. मैंने उसे कहा: हाँ, मैं जानता हूँ, लेकिन…?

शकुंतला: लेकिन क्या…!

मैं: कुछ नहीं…!

शकुंतला: क्या मैं इतनी बुरी दिखती हूँ….!!!

बस अब सब कुछ मेरे बर्दास्त के बाहर हो रहा था. मेरे से रहा नहीं गया. मैंने उठ के शकुंतला के कंधे से उसे उठाया और उसके होंठो के उपर अपने होंठ लगा दिए. मेरे मुहं में उसके होंठ आ गए और उसने जरा भी प्रतिकार नहीं किया. मैंने उसकी जबान को जोर जोर से चूसने लगा. और मेरे हाथ भी उसके स्तन के ऊपर अपनेआप ही चले गए.

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